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एक उपक्रम किया। उसने पुरिमताल नगर में दस दिनों तक चलने वाले एक महोत्सव का आयोजन किया । उस महोत्सव में अभग्नसेन को भी आमंत्रित किया।
अभग्नसेन को अपने चातुर्य पर अभिमान था । उसे यह मान हो गया था कि उसे कोई नहीं पकड़ सकता। सो उसने राजा का आमंत्रण स्वीकार कर लिया। वह वेश परिवर्तन कर समारोह में शामिल हुआ। सैनिकों ने उसे और उसके साथियों को मद्य-मांस का आहार करा बेभान बना दिया। इस प्रकार जब वह अपने साथियों सहित मदिरा के नशे में चूर था तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया। राजा ने उसे शूली का दण्ड दिया । कठिन लौह बन्धनों में बांध कर सैनिक उसे वधस्थल की ओर ले चले।
उधर भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य गणधर गौतम भिक्षा के लिए पुरिमताल नगर में भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने लौह बन्धनों में बंधे और वधस्थल पर ले जाए जा रहे उस चोर को देखा। उसे देखकर उनका मन खिन्नता से भर गया। वे भगवान के पास पहुंचे और उन्होंने भगवान से पूछा - भगवन् ! अभग्नसेन ने ऐसे क्या पाप किए थे, जिन के फलस्वरूप उसे शूली पर चढ़ाया जा रहा है ? भगवान ने कहा- गौतम ! पूर्वभव में अभग्नसेन इसी नगर का निन्हव नामक एक वणिक था, जो अण्डों का बहुत बड़ा व्यापारी था । यह स्वयं भी अण्डे खाता था और दूसरों को भी खिलाता था । आयुष्य पूर्ण कर वह तीसरी नरक में गया । वहां से निकलकर यह अभग्नसेन बना है। यहां भी इसने चोरी जैसे निंदनीय कर्म को अपनाया और फलस्वरूप आज दिन के तृतीय प्रहर में यह शूली पर लटका दिया जाएगा। यहां से मरकर प्रथम नरक में जाएगा। तत्पश्चात् अनेक भवभ्रमण करके वाराणसी नगरी में श्रेष्ठीकुल में जन्म लेकर संयम स्वीकार करेगा और सिद्ध होगा । - विपाक सूत्र
अभय कुमार
मगध नरेश महाराज श्रेणिक के ज्येष्ठ पुत्र और मगध देश के महान बुद्धिमान् महामंत्री । उनकी माता का नाम नन्दा था, जो महाराज श्रेणिक की प्रथम परिणीता थी । कुमारावस्था में ही श्रेणिक को सहोदरों के विद्वेष के कारण गृहत्याग करना पड़ा था। फलतः वे भटकते हुए वेणातट नामक नगर में पहुंचे और वहां भद्र नामक श्रेष्ठी के अतिथि बने । श्रेष्ठी को श्रेणिक इतने भाए कि उसने अपनी पुत्री नन्दा का विवाह उनसे कर दिया। कुछ दिन श्रेष्ठी गृह में बिताकर और नन्दा को वहीं छोड़कर तथा उसे सांकेतिक भाषा में अपना परिचय लिखित रूप में देकर श्रेणिक अपने नगर को चले गए। शीघ्र ही वे मगध देश के राजा बन गए। उसने अपने पिता की खोज
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अभयकुमार का जन्म अपने ननिहाल में हुआ। अभय जब युवा हुआ
की और अपने बुद्धिबल से वह मगध का महामंत्री बन गया । वह इतना कुशाग्र-बुद्धि और औत्पत्तिकी बुद्धि का स्वामी था कि उसने मगध देश को अनेक बार बड़े-बड़े संकटों से रक्षित किया। महाराज श्रेणिक की कई व्यक्तिगत उलझनों को उसने सुलझाया।
एक बार श्रेणिक चेटक पुत्री सुज्येष्ठा के रूप पर मोहित हो गया और उसने चेटक से उसकी पुत्री की मांग की। महाराज चेटक का यह प्रण था कि वे अपनी सभी पुत्रियों का विवाह जैन कुल में ही करेंगे। श्रेणिक उस समय तक जैन धर्मी नहीं बने थे। सो चेटक ने श्रेणिक का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। इस से श्रेणिक निराश हो गए। आखिर पितृ-निराशा को अभय कुमार ने ही दूर किया। अपने बुद्धि-कौशल से उसने वह सब संयोजना सृजित कर दी, जिससे गुप्त रूप से श्रेणिक चेटक के महलों में जा पहुंचे। परन्तु अन्तिम क्षणों में दैववश सुज्येष्ठा छूट गई और उसकी बहन चेलना महाराज श्रेणिक के साथ आ गई। यही चेलना महाराज श्रेणिक की पटरानी बनी।
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