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(क) अभयदेव (आचार्य)
उक्त नाम के तीन प्रसिद्ध आचार्य जैन परम्परा में हुए हैं-1. नवांगी टीकाकार अभयदेव सूरि, 2. मलधारी अभयदेव सूरि, 3. 'वादमहार्णव' के टीकाकार अभयदेव सूरि। ___ यहां वादमहार्णव के टीकाकार अभयदेव सूरि का परिचय विवेचित है। आचार्य अभयदेव सूरि का जन्म राजपरिवार में हुआ था। चन्द्रगच्छ के आचार्य प्रद्युम्न सूरि के पास अभयदेव दीक्षित हुए और एक विद्वान आचार्य के रूप में उनकी ख्याति हुई। आचार्य अभयदेव और उनके शिष्यों का कई राजवंशों पर प्रभाव था, जिनमें धारा नरेश मुंज विशेष था। ____ आचार्य अभयदेव सूरि रचित वादमहार्णव एक सुप्रसिद्ध टीका ग्रन्थ है। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के 'सम्मति तर्क' नामक ग्रन्थ पर यह टीका ग्रन्थ रचा गया है। जैन न्याय और दर्शन का यह प्रतिनिधि ग्रन्थ माना जाता है।
आचार्य अभयदेव सूरि का सत्ताकाल वी.नि. की 15वीं 16वीं शती माना जाता है। (ख) अभयदेव (नवांगी टीकाकार आचाय)
जैन परम्परा में आचार्य अभयदेव की ख्याति नवांगी टीकाकार के रूप में है। उन्होंने नौ अंग आगमों पर टीकाएं लिखीं। उन द्वारा टीकाकृत आगम ये हैं-1. स्थानांग, 2. समवायांग, 3. व्याख्याप्रज्ञप्ति, 4. ज्ञाताधर्मकथांग, 5. उपासकदशांग, 6. अन्तकृद्दशांग, 7. अनुत्तरौपपातिकदशांग, 8. प्रश्नव्याकरण, 9. विपाक सूत्र । उपांग सूत्र औपपातिक पर भी आचार्य श्री ने टीका का निर्माण किया। आचार्य हरिभद्र कृत दो ग्रन्थों - षोडशक और पञ्चाशक पर भी उन्होंने टीकाएं लिखीं। टीकाओं के अतिरिक्त भी उन्होंने कुछ ग्रन्थों का निर्माण किया था। इससे सहज ही सिद्ध होता है कि आचार्य अभयदेव दिग्गज विद्वान मुनिराज थे। ___आचार्य अभयदेव का जन्म धारानगरी में वी.नि. 1542 में एक श्रेष्ठी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम महीधर और माता का नाम धनदेवी था। अभय देव आचार्य जिनेश्वर के उपदेश से प्रबुद्ध होकर उनके शिष्य बने। अध्ययन में वे मेधावी सिद्ध हुए और आगमों के तलस्पर्शी अध्येता बने। शासनदेवी की पावन प्रेरणा पाकर उन्होंने आगमों पर टीकाओं की रचना का कार्य प्रारंभ किया। जैन जगत में आचार्य अभयदेव कृत टीका ग्रन्थों का सर्वोच्च स्थान है।
टीका साहित्य की रचना के पश्चात् एक बार आचार्य अभयदेव कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो गए। उनके प्रभाव से ईर्ष्या करने वालों ने अपवाद फैला दिया कि उत्सूत्र की प्ररूपणा करने के कारण उन्हें कुष्ठ हुआ है। आचार्य श्री के लिए वे विकट क्षण थे। परन्तु उन्होंने अपने धैर्य को डोलने नहीं दिया। आखिर धरणेन्द्र देव ने आचार्य श्री का उपचार कर उन्हें स्वस्थ बनाया।
आचार्य अभयदेव 15वीं, 16वीं (वी.नि.) शताब्दी के विद्वान आचार्य थे। -प्रभावक चरित्र (ग) अभयदेव मलधारी (आचार्य)
वी.नि. की 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के एक तेजस्वी आचार्य। 'मलधारी' उनका यह उपनाम उनके उत्कृष्ट आचार और क्रियानिष्ठा की ओर संकेत करता है। आचार्य अभयदेव शरीर पर जमे मैल का निराकरण न करके मल परीषह को प्रसन्न भाव से सहन करते थे। उनके त्याग और तप से तत्युगीन साधारण जन से लेकर सम्राटों तक प्रभावित थे। गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह, शाकम्भरी नरेश पृथ्वीराज, गोपगिरि नरेश ..24 ...
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