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विमला ज्येष्ठ की कपट-नीति को जानती थी । सो उसने कुछ दिन बाद आने का आश्वासन देकर राजध्वज को विदा कर दिया । परन्तु पन्द्रह दिन बीतने पर राजध्वज पुनः आ धमका और कपट संदेश दिया कि उसका भाई गंभीर रूप से घायल है । अतः विमला का उसके पास होना आवश्यक है। महाराज कीर्तिध्वज
अपनी पुत्री को समझाया और ज्येष्ठ जी के साथ जाने को कहा । विमला ने पिता को सब बातें समझा दीं कि ज्येष्ठ जी की नीयत ठीक नहीं है । उस पर भी माता-पिता ने विमला को समझा कर श्वसुर गृह जाने पर विवश कर दिया।
विमला के समक्ष चक्रव्यूह था जिसमें वह फंसना नहीं चाहती थी । वह रात्रि में अपने घर से निकल गई और दूर जंगलों में चली गई। एक पर्वत गुफा में छिपकर वह नवकार मंत्र की आराधना करने लगी । उधर दूसरे दिन विमला को घर में न पाकर सब पर वज्रपात हो गया । निराश राजध्वज अपने नगर लौटा तो वहां का चित्र बदला हुआ था । पोलासपुर नगर के राजा ने ऋषभपुर के शासन पर अधिकार कर लिया था । राजध्वज के कुशासन से प्रजा त्रस्त थी ही । इसलिए पोलासपुर नरेश को विशेष अवरोध का सामना नहीं करना पड़ा। राजध्वज के ऋषभपुर में प्रवेश करते ही उसे बन्दी बनाकर कारागृह में डाल दिया गया ।
सीमान्त प्रदेश में शत्रु को परास्त कर पद्मध्वज मण्डनपुर पहुंचा। पूरी स्थिति को जानकर जहां विमा के विरह से वह व्याकुल बन गया वहीं पोलासपुर नरेश की धृष्टता पर उसके नेत्र रंजित बन गए। उसके पास थोड़ी ही सेना थी । श्वसुर की सेना के सहयोग से उसने पोलासपुर नरेश को शीघ्र ही धूल चटा दी । भाई को कारागृह से मुक्त करके उसे पुनः सिंहासनासीन किया। उसके बाद वह विमला की खोज में निकला । कुछ मास की खोज के पश्चात् उसे सफलता प्राप्त हो गई। पत्नी को साथ लेकर वह ऋषभपुर पहुंचा । विमला की चारित्रदृढ़ता, शील-निष्ठा तथा अनुज पद्मध्वज का भ्रातृसमर्पण देखकर राजध्वज को स्वयं पर घोर आत्मग्लानि हुई, उसका हृदय परिवर्तन हो गया । उसने अनुज और अनुजवधू से क्षमा मांगी। इतने से ही उसका पश्चात्ताप / प्रायश्चित्त पूर्ण नहीं हुआ। उसने पद्मध्वज को राजगद्दी पर बैठाकर स्वयं प्रव्रज्या धारण कर ली।
पद्मध्वज ने ऋषभपुर की प्रजा का पुत्रवत् पालन किया। कालक्रम से विमला ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम गुणध्वज रखा गया । युवावस्था में गुणध्वज को राजपद देकर पद्मध्वज और विमला ने दीक्षा धारण की। दोनों देवलोक में गए। वहां से च्यव कर मनुष्य भव धारण कर दोनों मोक्ष जाएंगे। (ख) विमला (आर्या )
इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है । (देखिए - कमला आर्या)
(ग) विमला देवी
राजकुमार विशालधर (विहरमान तीर्थंकर) की परिणीता । (देखिए - विशालधर स्वामी)
विलास
पृथ्वीपुर नगर का राजा और प्रतिवासुदेव मधु का जनक ।
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ.30
विशल्या
कौतुकमंगल नगर के राजा द्रोणमेघ की पुत्री । द्रोणमेघ दशरथ - पुत्र भरत जी के मामा थे। व रूपवती और सुशील कन्या थी । पूर्वजन्म में किए गए तप से उसे विशेष शक्ति / लब्धि की प्राप्ति हुई थी - वह ••• जैन चरित्र कोश
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