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(क) विमला ___ मण्डनपुर नरेश महाराज कीर्तिध्वज की पुत्री और ऋषभपुर नगर के युवराज पद्मध्वज की अर्धांगिनी, एक बुद्धिमती और पतिव्रता सन्नारी। ऋषभपुरी नरेश वृषभध्वज एक धर्मात्मा और नीति परायण नरेश थे। उनके दो पुत्र थे। बड़ा राजध्वज और छोटा पद्मध्वज । राजध्वज उद्दण्ड और अन्यायी था। उसके जीवन में
नेक बुराइयां थीं, अकारण ही वह प्रजा को कष्ट दिया करता था। इसके विपरीत छोटा राजकुमार पद्मध्वज विनयवान, धर्मात्मा और प्रजावत्सल था। राजध्वज के दुर्गुणों से दुखी पिता वृषभध्वज ने पैतृक परम्परा को तोड़कर अपने छोटे पुत्र पद्मध्वज को युवराज बना दिया। इससे राजध्वज जल-भुन गया। उसने रिश्वत प्रलोभनादि से कई राज्याधिकारियों को अपने पक्ष में कर लिया। महाराज वृषभध्वज की मृत्यु के पश्चात् ऋषभपुर में सत्ता-संघर्ष चरम पर पहुंच गया। प्रजा पद्मध्वज को राजा बनाना चाहती थी, परन्तु कुछ प्रमुख राज्याधिकारी राजध्वज के पक्ष में थे। आखिर पद्मध्वज ने उस संघर्ष को विराम दिया और घोषणा की कि अग्रज राजध्वज ही परम्परानुसार राज्य के अधिकारी हैं। वह स्वयं बिना पद ग्रहण किए ही प्रजा की सेवा करेगा।
परिणामतः राजध्वज ऋषभपुर का राजा बना। कृत्रिम प्रेम दिखा कर वह पद्मध्वज को अपने अनुकूल रखता। सरल हृदयी पद्मध्वज राजध्वज के प्रेम को निश्छल और सहज ही मानता था। एक बार राजध्वज की दृष्टि छोटे भाई की पत्नी विमला पर पड़ी, तो वह उसके रूप पर मुग्ध हो गया। उसने दूती के हाथ मूल्यवान वस्तुएं भेंट स्वरूप विमला के पास भेजी। विमला ने सरल हृदय से ज्येष्ठ जी की कृपा मानकर वे वस्तुएं रख लीं। दूसरी बार राजध्वज ने श्रृंगार-प्रसाधन विमला के पास भेजे, इससे विमला समझ गई कि उसके ज्येष्ठ की नीयत ठीक नहीं है। उसने दूती को अपमानित करके भगा दिया। विमला धर्मसंकट में थी कि ज्येष्ठ जी की नीयत के बारे में अपने पति को कहे अथवा न कहे। वह नहीं चाहती थी कि उसके कारण दो भाइयों में मनो-मालिन्य उत्पन्न हो, पर मौन भी उपाय नहीं था। उसने संकेत मात्र से अपने पति को समझा दिया। पर पद्मध्वज ने इसे विमला का भ्रम ही माना।
राजध्वज पद्मध्वज को अपने पथ का कांटा मानने लगा। वह पद्मध्वज को अपने पथ से हटाने की युक्ति सोचने लगा। उसी अवधि में उसे सूचना मिली कि उसके राज्य की दक्षिण दिशा के ग्रामों पर शत्रु उत्पात मचा रहे हैं। इससे राजध्वज को मार्ग मिल गया। उसने युद्ध के नगाड़े बजवा दिए और सीमान्त प्रदेश पर जाने की तैयारी करने लगा। पद्मध्वज ने अग्रज से कहा, छोटे भाई के होते हुए बड़ा भाई युद्ध में जाए, यह छोटे भाई के लिए शोभनीय नहीं है। युद्ध में जाने की मुझे आज्ञा प्रदान करें। राजध्वज यही चाहता था। सने पदमध्वज को आज्ञा दे दी। तदनन्तर पदमध्वज विमला के पास पहुंचा और उसको अपने यद्ध में जाने की बात कही। विमला भावी को स्पष्ट अनुभव कर रही थी। उसने पति से कहा, जब तक आप युद्ध से लौटें तब तक मैं अपने पीहर जाना चाहती हूँ, युद्ध से लौटते हुए आप स्वयं मुझे लाएं। पद्मध्वज ने विमला की बात स्वीकार कर ली। उसने विमला को उसके पीहर भेज दिया और स्वयं युद्ध में चला गया।
राजध्वज का दांव असफल गया। उधर युद्ध क्षेत्र से पद्मध्वज ने सूचना भिजवाई कि शत्रु चालाक है और उसे परास्त करने में छह मास तक लग सकते हैं। राजध्वज को जैसे जीवन का संदेश मिल गया। वह मण्डनपुर विमला को लेने पहुंचा। विमला के पिता महाराज कीर्तिध्वज को कपट संदेश दिया कि उसका अनुज पद्मध्वज युद्ध में विजयी होकर लौटा है। परन्तु वह युद्ध में घायल हो गया है। अतः विमला को उसके साथ शीघ्र भेजा जाए। ...558 ..
- जैन चरित्र कोश ...