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वर्ष की अवस्था में दीक्षा धारण की, तिरेपनवें वर्ष में इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई, और सत्तर वर्ष का कुल आयुष्य पूर्ण कर ये सिद्ध हुए । - आवश्यकचूर्ण
वात गाथापति
राजगृह निवासी वार ने भगवान महावीर से दीक्षा ली और बारह वर्षों तक निरतिचार संयम पाल कर विपुलाचल से सिद्धि प्राप्त की । - अन्तगड सूत्र, वर्ग 6, अध्ययन 9
वारिखिल्ल
आदीश्वर प्रभु ऋषभ का पौत्र और मिथिलाधिपति महाराज द्रविड़ का पुत्र । उसका एक सहोदर भी था जिसका नाम द्राविड़ था । द्राविड़ ज्येष्ठ और वारिखिल्ल कनिष्ठ था। महाराज द्रविड़ ने ज्येष्ठ पुत्र द्राविड़ को मिथिला का राज्य और वारिखिल्ल को एक लाख गांवों का आधिपत्य देकर दीक्षा धारण कर ली। पिता Shah कुछ समय तक तो दोनों भाइयों के मध्य परस्पर प्रेमभाव रहा, पर बाद में ईर्ष्याभाव जाग उठा । भरत और बाहुबली के युद्ध को आदर्श मानकर दोनों भाई परस्पर एक दूसरे का राज्य- हड़पने के लिए युद्ध के लिए उत्सुक बन गए । विशाल सेनाएं दोनों ओर से सजीं और दो सहोदरों में राज्य लिप्सा कारण घोर युद्ध हुआ। आखिर एक तापस के उपदेश से दोनों भाइयों को अपनी भूल परिज्ञात हुई। दोनों ने अपने-अपने पुत्रों को राज्यभार प्रदान कर तापसी प्रव्रज्या धारण कर ली।
कई वर्षों तक वारिखिल्ल और द्राविड़ तापसी प्रव्रज्या का पालन करते रहे । कालान्तर में उन्हें राजर्षि नमि - विनमि के दो शिष्य-मुनियों का संग प्राप्त हुआ। उनकी संगति और उपदेश से दोनों भाइयों ने तापसी प्रव्रज्या का परित्याग कर श्रामणी प्रव्रज्या अंगीकार की। उन्हीं मुनियों के साथ वे दोनों शत्रुंजय पर्वत पर पहुंचे। वहां पर उन्होंने तप संयम की उत्कृष्ट आराधना से केवलज्ञान प्राप्त किया। दोनों भाई निर्वाण को प्राप्त हुए । - शत्रुञ्जय महात्म्य / त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्र / उपदेश प्रासाद / गौतम कुलक, बालावबोध कथा 90 वारिषेण कुमार
वसुदेव और धारिणी के पुत्र । (परिचय - जालिवत्)
वारुणी
- अन्तगड सूत्र वर्ग 4, अध्ययन 5
कोल्लाक ग्रामवासी धनमित्र की अर्द्धांगिनी और भगवान महावीर के चतुर्थ गणधर व्यक्त स्वामी की
जननी ।
वासवदत्ता
उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत की पुत्री और कौशाम्बीपति वीणावादकुशल महाराज उदयन की रानी । (देखिए - उदयन)
वासुदेव
वैदिक मान्यतानुसार वसुदेव के पुत्र होने से श्रीकृष्ण 'वासुदेव' कहलाए। जैन मान्यता में थोड़ा है। जैन मान्यतानुसार ‘वासुदेव' एक पद है । वासुदेव पद का संवाहक / धारक वह श्रेष्ठ वीर पुरुष होता है जो अपने पराक्रम के बल पर तीन खण्डों पर अपना शासन स्थापित करता है । प्रवहमान अवसर्पिणी में नौ वीर पुरुष इस पद के धारक हुए जिनमें श्रीकृष्ण का क्रम अंतिम है । दशरथ पुत्र लक्ष्मण अष्टम वासुदेव हुए ।
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