________________
आपके पिता का नाम नेमिकुमार था जो अनन्य आस्थाशील जिनोपासक थे। उन्होंने राहड़पुर में भगवान नेमिनाथ तथा नलोटपुर में भगवान आदिनाथ के भव्य और विशाल मंदिर निर्मित कराए थे।
छन्दोनुशासन और काव्यानुशासन वाग्भट्ट की अतिप्रसिद्ध रचनाएं हैं जो सदियों से कवियों का मार्गदर्शन करती रही हैं। इन रचनाओं के अतिरिक्त भी आपकी कई रचनाओं की सूचना मिलती है, पर वर्तमान में वे उपलब्ध नहीं हैं।
-तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा वादिदेव (आचार्य)
प्रभावक चरित्र के अनुसार वी.नि. की सतरहवीं शताब्दी के एक दिग्गज वादी आचार्य। वाद कला में निपुण होने से ही वे वादिदेव कहाए। आचार्य वादिदेव का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है__गुजरात प्रदेश के मदाहृत नामक गांव में वीरसेन / वीरनाग नामक श्रेष्ठी रहते थे। उनकी पत्नी का नाम जिनदेवी था। चन्द्रमा का स्वप्न देखकर जिनदेवी ने गर्भ धारण किया। पुत्र जन्म पर उसका नाम पूर्णचन्द्र रखा गया। नौ वर्ष की अवस्था में अपनी माता के साथ पूर्णचन्द्र ने आचार्य मुनिचन्द्रसूरि के श्री चरणों में दीक्षा धारण की। पूर्णचन्द्र को नवीन नाम दिया गया रामचन्द्र । जिनदेवी को 'चन्दनबाला' नाम दिया गया
और कुछ समय पश्चात् उसे महत्तरा पद पर प्रतिष्ठा मिली। ___कालांतर में मुनि रामचन्द्र आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए और उन्हें देव नाम प्रदान किया गया। आचार्य देव अपने युग के समर्थ विद्वान और वादियों का मानभंग करने वाले आचार्य थे। उन्होंने अनेक धुरन्धर वादियों को शास्त्रार्थ में पराजित किया। उसी कारण से आचार्य देव वादिदेव के नाम से विख्यात हुए।
"प्रमाणनयतत्वलोकालंकार" आचार्य वादिदेव की एक उत्कृष्ट रचना है।
वी.नि. 1696 में 83 वर्ष की अवस्था में आचार्य वादिदेव दिवंगत हुए। -प्रभावक चरित्र वादिराज (आचार्य) ___ एक विद्वान जैन आचार्य। उनके गुरु का नाम मतिसागर था। वे द्रमिल या द्राविड़ संघ परम्परा के आचार्य थे। वे तार्किक विद्वान और वाद निपुण आचार्य थे। दक्षिण के सोलंकी वंश के राजा जयसिंह (प्रथम) आचार्य वादिराज के भक्त थे। आचार्य वादिराज ने अपने जीवनकाल में पर्याप्त साहित्य का सृजन किया। न्याय विनिश्चय विवरण, प्रमाण निर्णय, यशोधर चारित्र, एकीभाव स्तोत्र, पार्श्वनाथ चरित्र, अध्यात्माष्टक, त्रैलोक्य दीपिका आदि उनकी श्रेष्ठ रचनाएं हैं। आचार्य वादिराज वी.नि. की 16वीं शताब्दी के आचार्य थे।
-नगर ताल्लुका अभिलेख वामादेवी
वाराणसी नरेश महाराज अश्वसेन की रानी और प्रभु पार्श्वनाथ की जननी। (देखिए-पार्श्वनाथ तीर्थंकर) वायुभूति (गणधर)
भगवान महावीर के तृतीय गणधर तथा इन्द्रभूति गौतम और अग्निभूति के सहोदर। गौतम गोत्रीय वसुभूति ब्राह्मण और पृथ्वी उनके जनक-जननी थे। इन्द्रभूति और अग्निभूति दोनों सहोदरों को महावीर के समक्ष पराजित हुआ जानकर ये अपने पांच सौ शिष्यों के साथ भगवान के पास पहुंचे। भगवान ने इनका अन्तःसंदेह का भी निवारण कर दिया। इनका संदेह था, शरीर और आत्मा भिन्न हैं या अभिन्न । संदेह शूल से मुक्त होते ही इन्होने शिष्यों सहित स्वयं को महावीर के पाद-पद्मों पर अर्पित कर दिया। इन्होंने तैंतालीस ... जैन चरित्र कोश ..
-- 541 ...