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गांव वाले इस विचित्र राजाज्ञा से सहम गए। पर रोहक ने मुस्काते हुए कहा, मैं राजा के आदेश के अनुसार ही उनके पास जाऊंगा, अतः आप लोग किंचित्मात्र भी चिन्ता न करें।
अमावस्या और एकम के संधि समय से कुछ पूर्व रोहक ने कण्ठ तक स्नान किया और संध्या समय चलनी का छत्र सिर पर धारण करके, एक मेंढ़े पर बैठकर गाड़ी के पहिए के बीच के मार्ग से वह राजा के पास चल दिया। मार्ग से उसने एक मिट्टी का ढ़ेला राजा को भेंट देने के लिए उठा लिया। इस विधि से वह राजा के पास पहुंचा।
रोहक ने राजा को प्रणाम किया। उसके आगमन विधि-विधान से राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ। पर रोहक ने जब मिट्टी का ढ़ेला राजा को भेंट दिया तो राजा ने चकित होकर पूछा- यह क्या है ?
रोहक ने कहा- महाराज ! आप पृथ्वीपति हो, इसीलिए मैं आपको भेंट करने के लिए पृथ्वी लाया हूं। रोहक की वाकुशलता पर राजा मुग्ध हो गया । उसने रोहक को अपने पास रख लिया ।
राजा ने रोहक को रात्रि में भी अपने कक्ष में ही सुलाया। रात्रि के द्वितीय प्रहर में राजा की नींद खुली तो उन्होंने पूछा- रोहक! जाग रहा है या सो रहा है?
रोहक ने कहा- जाग रहा हूं महाराज !
राजा ने पूछा- क्या सोच रहा है?
रोहक ने उत्तर दिया- महाराज ! सोच रहा हूं कि बकरी के पेट में गोल-गोल मींगनियां कैसे बनती हैं? राजा को कोई उत्तर न सूझा तो रोहक से ही पूछा- तुम ही बताओ कि मींगनियां गोल कैसे बनती हैं? रोहक ने कहा- बकरी के पेट में संवर्त्तक वायु होता है जिससे गोल मींगनियों का निर्माण होता है । कहकर रोहक सो गया ।
रात्रि के तृतीय प्रहर में राजा ने पुनः रोहक से पूछा कि जाग रहा है अथवा सो रहा है।
रोहक ने कहा- जाग रहा हूं, महाराज !
राजा ने पूछा- क्या सोच रहा है ?
रोहक ने कहा- महाराज सोच रहा हूं कि पीपल के पत्ते की शिखा लम्बी होती है अथवा डंठल ? राजा ने पूछा- तो तुमने क्या निर्णय किया?
रोहक ने कहा- महाराज ! जब तक शिखा का कुछ भाग सूखता नहीं है तब तक दोनों बराबर होते हैं। कहकर रोहक पुनः सो गया।
रात्रि के चतुर्थ प्रहर में राजा ने रोहक से पुनः पूछा कि वह क्या सोच रहा है। रोहक ने उत्तर दिया, वह यह सोच रहा है कि गिलहरी की पूंछ उसके शरीर से बड़ी होती है या छोटी । राजा पुनः असमंजस में पड़ा और रोहक से ही उसने निर्णय पूछा। रोहक ने उत्तर दिया - महाराज ! गिलहरी की पूंछ उसके शरीर जितनी लम्बी होती है। ऐसा कहकर वह पुनः सो गया ।
प्रभात होने पर मंगलवाद्यों की ध्वनि सुनकर राजा जाग गया। उसने रोहक को भी जगाना चाहा, पर वह गहरी निद्रा में सो रहा था, अतः जगा नहीं। तब राजा ने छड़ी की नुकीली कील से रोहक को कोंचा तो वह एकाएक उठ बैठा। राजा ने पूछा- रोहक ! अब क्या सोच रहा है ?
रोहक ने कहा- महाराज ! सोच रहा हूं कि आपके पिता कितने हैं?
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