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और जब शिला का भार स्तंभों पर आ जाए तो उसके नीचे की मिट्टी हटा दो। उसके बाद दीवारें खींचकर मंडप बना दो। इससे शिला को उसके स्थान से हटाए बिना ही उसे मंडप की छत बनाया जा सकेगा।
रोहक की बात सभी को उचित लगी। उसी विधि से मण्डप तैयार करके राजा को सूचित कर दिया गया। राजा ने गांव में जाकर मण्डप देखा। जांच करने पर उसे ज्ञात हुआ कि रोहक की बुद्धि से ही वैसा संभव हो पाया है। मन ही मन राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ और नगर को लौट गया।
(2) मेण्ढ़ा-कुछ दिन बाद राजा ने एक मेंढ़ा गांव में भिजवाया और आदेश दिया कि पन्द्रह दिन बाद मेंढ़े को राजा को लौटाया जाए, पर इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि उक्त अवधि में मेंढ़े का वजन न तो घटना चाहिए और न ही बढ़ना चाहिए। ___ विचित्र राजाज्ञा से भोले-भाले ग्रामवासी पुनः असमंजस में पड़ गए। जटिल समस्या थी। मेंढ़े को यदि भूखा रखा जाएगा तो वजन कम होना निश्चित था और निरंतर खिलाया-पिलाया जाएगा तो वजन बढ़ना तय था।
ग्रामीणों की स्थिति को समझकर रोहक ने ही उपाय निकाला। उसके बताए उपाय के अनुसार ग्रामीणों ने एक बाघ के पिंजरे के पास मेंढ़े को रखने का प्रबंध किया और उसके लिए बढ़िया पदार्थ खाने के लिए उपस्थित किए गए। पौष्टिक पदार्थ खाने के कारण मेंढ़ा दुर्बल नहीं हुआ और निरंतर भय के साए में रहने से विशेष पुष्ट भी नहीं हुआ। पन्द्रह दिन बाद उसे राजा को सौंप दिया गया। पूर्वतुल्य वजन पाकर राजा हैरान हुआ। रोहक की बुद्धि से निष्पन्न उपाय पर राजा अत्यन्त सन्तुष्ट हुआ।
(3) मुर्गा-राजा ने एक मुर्गा इस आदेश के साथ गांव भिजवाया कि बिना अन्य मुर्गे के इस मुर्गे को लड़ना सिखाया जाए। ग्रामीण पुनः सहमे। आखिर रोहक के उपाय से एक बड़ा दर्पण मुर्गे के समक्ष रखा गया। अपने प्रतिबिम्ब को शत्रु मानकर मुर्गा दर्पण पर पुनः-पुनः झपटा और लड़ना सीख गया।
(4) हाथी-राजा ने नट गांव में एक मरणासन्न हाथी भेजा और आदेश प्रेषित किया कि हाथी के और सभी समाचार देना पर 'हाथी मर गया है' ऐसा समाचार न दिया जाए। ऐसा समाचार दिया गया तो ग्रामवासियों को कठोर दण्ड दिया जाएगा।
हाथी मरणासन्न तो था ही सो गांव में पहुंचने के दूसरे दिन ही वह मर गया। गांव वाले भयभीत हो गए। आखिर रोहक ने ही उन्हें एक ऐसा उत्तर स्मरण कराया जिससे उनका भय मिट गया। गांव वाले राजा के पास गए और बोले-महाराज! आप का हाथी सरपट लेट गया है, न हिलता है, न डुलता है, न खाता है और न ही कुछ पीता है, यहां तक कि वह सांस भी नहीं लेता है।
राजा ने पूछा-तो क्या वह मर गया है? ग्रामीणों ने कहा, महाराज! ऐसा हम कैसे कह सकते हैं आप समर्थ हैं, जैसा चाहें फरमा सकते हैं। राजा ने पता लगा लिया कि उक्त उत्तर भी रोहक की बुद्धि से ही निष्पन्न हुआ है।
राजा ने उपरोक्त परीक्षाओं के अतिरिक्त भी रोहक की बुद्धि की कई अन्य परीक्षाएं लीं जिनमें रोहक पूरी तरह सफल रहा। आखिर राजा ने ग्राम में संदेश भिजवाया कि रोहक को राजा के पास भेजा जाए। पर ध्यान रहे कि वह न शुक्ल पक्ष में आए और न कृष्ण पक्ष में, न दिन में आए और न रात्रि में, न धूप में आए न ही छाया में, न आकाशमार्ग से आए और न भूमिमार्ग से, न मार्ग से आए और न उन्मार्ग से, न स्नान करके आए और न बिना स्नान किए। किन्तु वह आए अवश्य। ... जैन चरित्र कोश ...
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