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नट ने इसे बालसुलभ भय माना और पूछा कि क्या उस दिन भी तुमने इसी पुरुष को देखा था । रोहक ने उत्तर दिया, हां, मैंने उस दिन भी इसी पुरुष को देखा था ।
रोहक के उत्तर से भरत का पत्नी पर उत्पन्न संदेह नष्ट हो गया और वह उससे पुनः प्रेम करने लगा ।
उस घटना के पश्चात् रोहक विशेष सावधान हो गया। इस आशंका से कि प्रतिशोध वश उसकी विमाता उसे विषादि न दे दे, वह अपने पिता के साथ ही रहने लगा और उसके साथ ही भोजन करने लगा ।
किसी समय भरत को कार्यवश उज्जयिनी जाना पड़ा। रोहक भी पिता के साथ ही गया। भरत अपने आवश्यक कार्य में लग गया, उस अवधि में रोहक पूरे नगर में घूम आया। नगर का पूरा चित्र उसने अपने दिमाग में बैठा लिया। कार्य पूर्ण कर पिता पुत्र लौट चले । शिप्रा नदी के तट पर पहुंचने पर भरत को पुनः एक आवश्यक काम स्मरण हो आया। वह रोहक को नदी तट पर बैठाकर शीघ्र कदमों से नगर में चला
गया।
रोहक नदी के तट पर बिखरे रेत पर उज्जयिनी का चित्र बनाने लगा। उसने अपनी अद्भुत स्मरण शक्ति के बल पर पूरे नगर का चित्र उकेर दिया । यथास्थान विशाल और सुंदर राजमहल भी उसने चित्रित किया ।
नगर नरेश वन विहार को गया था। वह सैनिकों से बिछुड़ गया और अकेला ही उधर से लौटा । जैसे राजा रोह के चित्रित नगर पर से गुजरने लगा तो रोहक ने उसे टोका, महाशय ! जरा संभल के निकलिए । ये राजमहल है, यहां बिना आज्ञा के प्रवेश नहीं किया जा सकता है ।
एक छोटे से बालक की ऐसी बात सुनकर कुतूहलवश राजा ने झुककर नीचे देखा । अपने नगर का यथारूप चित्र देखकर राजा को सुखद आश्चर्य हुआ। छोटे से बालक की ऐसी बुद्धिमत्ता पर वह चमत्कृत था। रोहक से वार्तालाप करके उसने जान लिया कि उसने प्रथम बार ही उज्जयिनी नगरी को देखा है, और यह भी जान लिया कि वह नटग्राम के प्रधान भरत का पुत्र है।
रोह को प्रेम से दुलारकर उसकी बुद्धिमत्ता पर मंत्रमुग्ध बना राजा अपने गन्तव्य पर बढ़ गया । उसने अपने मन में निश्चय किया कि ऐसा बुद्धिमान बालक यदि उसके मंत्रिमण्डल का प्रधान बन जाए तो राज्य में विशेष विकास की संभावनाएं साकार हो सकती हैं। पर इसके लिए आवश्यक है कि रोहक की बुद्धि का सूक्ष्म परीक्षण किया जाए। राजा ने वैसा करने का निश्चय कर लिया।
यथासमय भरत शिप्रा नदी पर लौट आया और रोहक को साथ लेकर अपने गांव चला गया।
दूसरे ही दिन से राजा ने रोहक की बुद्धि की परीक्षा के लिए उपक्रम शुरू कर दिए। राजा ने क्रमशः कई विधियों से रोहक की परीक्षा ली, जिनका संक्षिप्त विश्लेषण निम्न प्रकार से है
(1) शिला - राजा ने नट ग्राम में आदेश भिजवाया कि राजा लिए एक मण्डप बनवाया जाए और उस मण्डप की छत ग्राम के निकट ही स्थित शिला को बनाया जाए। पर ध्यान रहे कि शिला को उसके स्थान से हिलाया न जाए।
राजा का आदेश सुनकर ग्रामवासी चिन्तित हो गए। मण्डप बनाना तो कठिन न था, पर अपने स्थान से हिलाए बिना शिला को मण्डप की छत बनाना उनके लिए संभव न था । भरत के नेतृत्व में ग्रामवासी एकत्रित हुए, पर राजाज्ञा के पालन का कोई उपाय वे खोज न सके। तब पिता की बगल में बैठे रोहक ने कहा, ऐसा किया जाना कठिन नहीं है। उसके लिए शिला के चारों ओर की मिट्टी हटाकर स्तंभ बना दो • जैन चरित्र कोश •••
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