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शुद्ध श्रावक धर्म का पालन करके स्वर्ग में गई। आगत चौबीसी में रेवती का जीव समाधिनाथ नामक सत्ररहवां तीर्थंकर बनेगा। रेवती नक्षत्र (आचार्य)
नन्दी सूत्र स्थविरावली के अनुसार एक विशिष्ट प्रभावशाली जैन आचार्य। उनका श्रुतज्ञान विशद और गहन था। वाचनाचार्य के गरिमामयी पद पर रहते हुए उन्होंने संघ में श्रुतज्ञान की लौ को प्रखर बनाया। आपका स्थान वाचनाचार्यों की परम्परा में उन्नीसवां है।
रेवतीमित्र नामक युग प्रधान आचार्य से रेवतीनक्षत्र भिन्न थे। दोनों के मध्य लगभग सौ वर्षों का अन्तराल माना जाता है। वाचनाचार्य रेवतीनक्षत्र का समय वीर निर्वाण की सातवीं शताब्दी अनुमानित है।
-नन्दी सूत्र स्थविरावली रैन मंजूषा
(देखिए-श्रीपाल) रोहक
__ औत्पातिकी बुद्धि का स्वामी एक नटपुत्र। - रोहक के पिता का नाम भरत था। भरत उज्जयिनी नगरी के निकट स्थित एक छोटे से नट ग्राम का प्रधान था। अकस्मात् भरत की पत्नी का निधन हो गया। उस समय रोहक अल्पायुषी ही था। भरत ने पुनर्विवाह कर लिया। विमाता दुष्ट स्वभाव की थी अतः वह सौतेले पुत्र रोहक को कष्ट देने लगी। एक दिन दुखित होकर रोहक ने विमाता से कहा-मां! तुम मुझे कष्ट क्यों देती हो? विमाता ने क्रोध से भरकर कहा, ऐसा पूछने वाला तू होता कौन है? मैं जैसा चाहूं वैसा ही करूंगी।
विमाता के इस रूक्ष व्यवहार से दुखित होकर रोहक ने उससे कहा, मां! तुम्हें अपने व्यवहार पर अवश्य पश्चात्ताप करना पड़ेगा। कहकर रोहक अपने पिता के पास चला गया। विमाता क्रोध में जलती-भुनती रही।
एक रात्रि में रोहक अपने पिता के साथ घर के बाहर सो रहा था। विमाता घर के अंदर सो रही थी। सुविचारित योजनानुसार रोहक सहसा उठा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा-उठो पिता जी! देखो कोई पुरुष अपने घर से निकल कर भागा जा रहा है।
भरत एकाएक जगा। रोहक द्वारा इंगित दिशा में वह दौड़ा पर अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दिया। इस घटना से भरत को अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह हो गया और उसने पत्नी से बोलना बंद कर दिया।
पति के अनमने व्यवहार को देखकर वह स्त्री समझ गई कि संभव है रोहक ने ही उसके खिलाफ अपने पिता को भडकाया है। उसने रोहक से मधर व्यवहार करना शुरू कर दिया और उसे इस बात के लिए मना लिया कि वह अपने पिता के रूक्ष व्यवहार को उसके प्रति मधुर बना देगा।
रोहक ने पुनः एक योजना सोची। एक बार चांदनी रात में घर के बाहर वह अपने पिता के साथ सो . रहा था। योजनानुसार वह हड़बड़ा कर उठा और जोर से चिल्लाया-पिता जी! कोई पुरुष यहां है। पिता ने तत्क्षण उठकर पूछा कि पुरुष कहां है? रोहक ने अपनी परछाईं की ओर इंगित करके बताया कि यह रहा पुरुष। ... जैन चरित्र कोश ...
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