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रोहक की बात सुनकर राजा तिलमिला उठा। पर उसने अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए पूछा-अच्छा तुम ही बताओ कि मेरे कितने पिता हैं?
रोहक ने कहा, महाराज! आपके प्रथम पिता तो कुबेर हैं, क्योंकि कुबेर के समान आप उदारचित्त हो। आपका द्वितीय पिता चाण्डाल है, क्योंकि शत्रुओं के लिए आप चाण्डाल के समान क्रूर हैं। तृतीय पिता है धोबी, क्योंकि जैसे धोबी आर्द्र वस्त्र को निचोड़ कर उसमें रहा हुआ पूरा जल निचोड़ लेता है, वैसे ही आप भी देशद्रोहियों का सर्वस्व हरण कर लेते हैं। चतुर्थ है बिच्छू, क्योंकि जैसे बिच्छू डंक मारकर पीड़ा पहुंचाता है ऐसे ही आपने मुझ नन्हे निद्राधीन बालक को छड़ी की कील चुभो कर पीड़ा पहुंचाई है। और पांचवें आपके लोकप्रसिद्ध पिता महाराज हैं, क्योंकि उन्हीं के समान आप न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करते हैं।
रोहक की बात सुनकर राजा गंभीर हो गया। नित्य-क्रियाओं से निपटकर वह अपनी माता के पास पहुंचा। माता को वंदन कर राजा ने रोहक की बात उसे बताई। राजमाता ने कहा, पुत्र! अगर विकारी भाव से देखने मात्र से ही तेरे संस्कारों का सजन हुआ है तो रोहक का कथन अक्षरशः सच है। क्योंकि जब तू गर्भ
तो एक दिन मैं कबेर देव की पजा करने गई थी। मार्ग में एक चाण्डाल और धोबी को मैंने देखा। महल में लौटकर कक्ष के एक कोने में बिच्छु-युगल को क्रीड़ारत देखा। इस पूरी अवधि में मेरा मन विकारावस्था में था। अन्यथा सच तो यही है कि तुम अपने पिता की ही संतान हो।
मां की परी बात सनकर राजा रोहक की बद्धिमत्ता पर मंत्रमग्ध हो गया। रोहक को सादर राजदरबार में ले जाकर राजा ने उसे अपना महामंत्री घोषित कर दिया। कहते हैं कि रोहक के महामंत्रि उज्जयिनी राज्य ने महान उत्कर्ष किया।
-नंदी सूत्र (क) रोहगुप्त
चम्पानगरी का एक धर्मात्मा और बुद्धिसम्पन्न महामंत्री। (देखिए-क्षुल्लक मुनि) (ख) रोहगुप्त (निन्हव)
त्रैराशिकवाद का प्ररूपक और आचार्य श्रीगुप्त का शिष्य। भगवान महावीर ने दो राशि कही, जीव राशि और अजीव राशि। रोहक ने इसमें नोजीवराशि को जोड़कर उसकी संख्या तीन कर दी। ऐसा उसने एक विशेष प्रसंग पर किया था और वैसा करने पर उसे विजयी सफलता मिली थी। प्रसंग ऐसे था
___ अतरंजिका नगरी में भ्रमण करते हुए रोहगुप्त ने पोटशाल नामक एक परिव्राजक को देखा जो अपने पेट पर लोहे की पट्टियां बांधे हुए था और हाथ में जम्बूवृक्ष की टहनी लिए घूम रहा था। पूछने पर उसने रोहगुप्त को बताया कि ज्ञानाधिक्य से उसका पेट न फट जाए इसलिए वह पेट पर लोहे की पट्टियां बांधे रखता है और जम्बूद्वीप में उसको शास्त्रार्थ में चुनौती देने वाला कोई नहीं है, जम्बूवृक्ष की टहनी उसी का प्रतीक है। उसकी गर्वोक्ति देख रोहगुप्त ने उसकी शास्त्रार्थ की चुनौती स्वीकार कर ली। राज्यसभा में शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। पोटशाल ने अपना पक्ष रखा-राशि दो हैं, जीव राशि और अजीव राशि। रोहगुप्त को उसके पक्ष का निराकरण करना था अन्यथा उसे पराजित घोषित कर दिया जाता। उसने कहा, राशि दो नहीं तीन हैं, जीव राशि, अजीव राशि और नोजीवराशि। मनुष्य, पशु और देव जीवराशि हैं, घट-पटादि अजीव राशि हैं और छडूंदर की कटी हुई पूंछ नोजीव राशि है। इस मिथ्या प्ररूपणा का पोटशाल के पास उत्तर न था। रोहगुप्त विजयी घोषित हुआ। वह गुरु के पास पहुंचा। गुरु ने मिथ्याप्ररूपणा के लिए उसे आलोचनादि से आत्मशद्धि करने के लिए कहा। रोहगप्त ने गरु की बात नहीं मानी। वह अपने ही हठ पर अडा रहा। फलतः उसे संघ से निष्कासित कर दिया गया। वह निन्हव अवस्था में ही मरा। ...जैन चरित्र कोश...
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