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पौषधशालाओं का निर्माण कराया था। साथ ही उसने एक कठोर नियम लिया था कि वह प्रतिदिन मुनिदर्शन करके ही अन्न-जल ग्रहण करेगा। उक्त नियम के पालन में एक बार उसे निरंतर तीन मास तक निराहारी रहना पड़ा। अधेड़ावस्था में उसे एक पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। पुत्र-पुत्री के युवा होने पर समान कुलों में उनके विवाह किए गए। पुत्र का नाम गुणसेन और पुत्रवधू का नाम विजया था। दुर्दैववश पुत्र और पुत्रवधू विपरीत प्रकृति के सिद्ध हुए। उन्होंने मणिचन्द्र और सुभद्रा-माता-पिता को घर से निकाल दिया। मणिचन्द्र ने इसे अपने ही कर्मों का दोष माना। इससे उसकी धर्म-श्रद्धा पूर्वापक्षया और सुदढ़ हो गई। अपने नगर से निकलकर सेठ कई नगरों में घूमता हुआ पुरपइठान नगर में आया। उसके पुण्य कर्म पुनः उदय में आए और अल्पकाल में ही वह पुनः कोटीश्वर बन गया।
उधर पुत्र गुणसेन के जीवन में द्यूत, मदिरा, वेश्यागमन आदि कई दुर्गुण प्रवेश कर गए और वह शीघ्र ही कंगाल हो गया। उसे सब ओर से फटकारें प्राप्त हुईं। आखिर उसे भी कनक पुरी का परित्याग करना पडा। चम्पापुरी में केशी स्वामी का उपेदश सुनकर गुणसेन और विजया को धर्म श्रद्धा की प्राप्ति हुई। उनके हृदय में विनय गुण उत्पन्न हुआ। तब उन्होंने अपने माता-पिता की खोज की और अपने दुर्व्यवहार के लिए उनसे क्षमा मांगी तथा अपना जीवन माता-पिता की सेवा में समग्रतः समर्पित कर दिया।
मणिचन्द्र धर्मध्यान पूर्वक जीवन यापन करके सद्गति का अधिकारी बना। आगे के भवों में वह मोक्ष प्राप्त करेगा। (क) मणिचूड़
एक मुनि (देखिए-मदनरेखा) (ख) मणिचूड़
रत्नपुर नरेश। मणिचूड़ एक विद्याधर राजा था और उसके पितृव्य विद्युत्वेग ने राज्य प्रलोभन के कारण उसे परास्त कर वन-शरण लेने के लिए विवश कर दिया था। विदेश यात्रा को निकले अर्जुन की मणिचूड़ से भेंट हुई। उस समय मणिचूड़ जीवन से निराश होकर आत्महत्या करना चाहता था। अर्जुन ने उसे धैर्य दिया। अर्जुन का मैत्री-भाव पाकर मणिचूड़ का खेद नष्ट हो गया। आखिर अर्जुन ने विद्युत्वेग को परास्त कर मणिचूड़ को उसका खोया हुआ राज्य दिलाया।
-जैन महाभारत मणिप्रभ
एक विधाधर । (देखिए-मदनरेखा) मणिभद्र आचार्य संभूतविजय के एक शिष्य।
-कल्पसूत्र स्थविरावली मणिरथ कुमार
तीर्थंकर महावीर कालीन काकंदी नगरी का युवराज, जो आखेट प्रिय था। प्रतिदिन वह जंगल में जाकर निरीह प्राणियों पर बाणवर्षा करता और रक्त बहाकर अपना शौक पूरा करता। किसी समय जब वह आखेट के लिए वन में गया तो एक स्थान पर घास चर रहा मृगसमूह उसकी पदचाप सुनते ही एक दिशा में भाग खड़ा हुआ। राजकुमार ने देखा, झुण्ड के सभी मृग भाग गए हैं पर एक मृगी मृत्यु को समक्ष आता हुआ जानकर भी अविचल अवस्था में खड़ी होकर एकटक दृष्टि से उसी की ओर देख रही है। मृगी को देखकर ... जैन चरित्र कोश ...
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