________________
धनंजय (कवि)
आठवीं शती ई. के एक जैन कवि।
कविवर धनंजय अपने युग के ख्यातिलब्ध महाकवि थे। उनके पिता का नाम वसुदेव, माता का नाम श्रीदेवी और गुरु का नाम दशरथ था। वे एक सद्गृहस्थ थे और जिनेन्द्र देव के चरणों में उनका दृढ़ अनुराग
था।
धनंजय पर सरस्वती की अपार कृपा थी। कहते हैं कि एक बार उनके पुत्र को सर्प ने काट लिया था। धनंजय ने 'विषापहार स्तोत्र' की रचना कर और उसका जप कर पुत्र को विषमुक्त कर दिया था।
कविवर धनंजय की दो अन्य रचनाएं पर्याप्त विश्रुत हैं-(1) 'धनंजय निघण्टु या नाममाला' (2) 'द्विसंधानमहाकाव्य' । ये दोनों ही ग्रन्थ अद्भुत हैं। प्रथम दो सौ पद्यों का शब्दकोश है। इसमें सत्रह सौ शब्दों को अर्थ सहित दिया गया है। एक शब्द से विविध शब्दों के निर्माण की विधि का दिग्दर्शन कराया गया है, जो संस्कृत के छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
द्विसंधान महाकाव्य' अपनी तरह का इकलौता काव्य ग्रन्थ है। अठारह सर्गों में रचित इस महाकाव्य में रामायण और महाभारत को एक साथ प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक श्लोक द्विअर्थक है। प्रथम अर्थ में रामचरित्र और द्वितीय अर्थ में कृष्णचरित्र अभिव्यंजित होता है। इस महाकाव्य में छन्द और अलंकारों की भी सुन्दर संयोजना हुई है। ग्रन्थ का अपर नाम 'राघव पाण्डवीय' भी है।
-तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भाग-4 धनकुमार
बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमी नौ भव पूर्व धनकुमार नामक राजकुमार थे। वे अचलपुर नगर के राजकुमार थे। देवताओं के समान सुरूप थे। सुरूपता के साथ-साथ वे समस्त गुणों के निधान भी थे। युवावस्था में उनका विवाह कुसुमपुर नरेश सिंह की पुत्री धनवती के साथ हुआ। धनकुमार और धनवती के मध्य अनन्य अनुराग भाव उत्पन्न हुआ। एक-दूसरे के बिना वे दोनों स्वयं को अधूरा मानते थे। एक बार राजकुमार धनकुमार धनवती के साथ वनविहार के लिए गए। वहां पर उन्होंने एक मुनि को देखा, जो अचेतावस्था में पड़े हुए थे। धनकुमार मुनि की दशा देख कर द्रवित हो गए। आमोद-प्रमोद को भूलकर वे मुनि की सेवा में लग गए। राजकुमार के शीतोपचार से मुनि की मूर्छा भंग हो गई। राजकुमार के पूछने पर मुनि श्री ने बताया कि वे मार्ग भूलकर क्षुधा-तृषा के परीषह के कारण अचेत हो गए थे। राजकुमार ने मुनि की शुश्रूषा की और शुद्ध आहार-जल से मुनि की सेवा-आराधना की। मुनि श्री कुछ दिन वहां विराजे। उनके उपदेश से धनकुमार के पिता महाराज विक्रमधन विरक्त हो गए। उन्होंने धनकुमार को राजपद प्रदान कर स्वयं आर्हती प्रव्रज्या अंगीकार कर ली। धनकुमार और धनवती ने श्रावक धर्म ग्रहण किया। ... जैन चरित्र कोश ..
-- 263 ...