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चेलना रानी
चेलना वैशाली नरेश गणाध्यक्ष महाराज चेटक की सात पुत्रियों में से सबसे छोटी पुत्री थी। वह शीलवती और सुसंस्कारी कन्या थी। उसका लालन-पालन अत्यधिक लाड़-प्यार से हुआ था। चेलना की बड़ी बहन का नाम था सुज्येष्ठा। वह भी परम रूपवान कन्या थी। एक बार उसकी सौन्दर्य-कथा सुनकर मगध नरेश श्रेणिक उससे विवाह करने को लालायित हो गया। उसने अपना वैवाहिक प्रस्ताव महाराज चेटक के पास भेजा। पर चेटक का यह संकल्प था कि वे अपनी सभी पुत्रियों का विवाह जैन कुल में करेंगे। उस समय तक श्रेणिक बौद्ध धर्मानुयायी थे। फलतः चेटक ने श्रेणिक का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। परन्तु श्रेणिक किसी भी विधि से सुज्येष्ठा से विवाह करना चाहता था। पिता की इच्छा अभयकुमार को ज्ञात हुई तो उसने सुज्येष्ठा-श्रेणिक विवाह सम्पन्न कराने के लिए एक योजना बनाई और उस योजना पर वह कार्य करने लगा। वह व्यापारी बनकर वैशाली गया। वहां उसने दासियों के माध्यम से राजकुमारी सुज्येष्ठा के मन में महाराज श्रेणिक के प्रति अनुराग उत्पन्न कर दिया। तदनन्तर उसने दूर जंगलों से सुज्येष्ठा के महल तक सुरंग का निर्माण कराया। साथ ही उसने सुज्येष्ठा को निश्चित समय बता दिया कि उक्त समय पर महाराज श्रेणिक सुरंग मार्ग से उसे लेने आएंगे।
सुज्येष्ठा और चेलना में पारस्परिक घनिष्ठ प्रेम था। वे दोनों एक दूसरी के बिना रह नहीं सकती थीं। वे साथ-साथ रहती, खाती और टहलती थीं। सो उन दोनों ने यह संकल्प किया कि दोनों ही महाराज श्रेणिक के साथ जाएंगी और उनकी रानियां बनेंगी। इस सम्बन्ध में उन्होंने अभय कुमार को भी अवगत करा दिया।
निर्धारित समय पर सुरंग मार्ग से अपने बत्तीस अंगरक्षकों के साथ महाराज श्रेणिक सुज्येष्ठा के महल पर पहुंचे। सुज्येष्ठा और चेलना पहले से ही प्रतीक्षारत थीं। परन्तु ठीक प्रस्थान के क्षण में सुज्येष्ठा को स्मरण आया कि वह अपनी रत्नमंजूषा साथ लाना भूल गई है। वह रत्नमंजूषा लेने के लिए पुनः महल में चली गई। परन्तु उसी क्षण महल के रक्षक सैनिक सजग हो गए। महाराज श्रेणिक चेलना को साथ लेकर रवाना हो गए। उनके अंगरक्षकों ने सैनिकों का मार्ग रोक लिया और सभी ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी सैनिकों को श्रेणिक तक नहीं पहुंचने दिया।
चेलना मगधदेश की पटरानी बनी। श्रेणिक का उसके प्रति विशेष अनुराग था। पर दोनों में एक बात थी, जो विपरीत थी, वह थी धर्मभिन्नता। श्रेणिक बौद्ध धर्मावलम्बी थे तो चेलना जैन धर्मावलम्बी थी। दोनों एक-दूसरे को अपने-अपने मत की ओर आकर्षित करने के लिए प्रयासरत रहते थे। आखिर एक दिन उस समय चेलना की प्रसन्नता का पारावार न रहा, जब उसे ज्ञात हुआ कि उसके पति ने अनाथी मुनि से जैन संस्कारों की दीक्षा ले ली है।
चेलना और श्रेणिक भगवान महावीर के अनन्य उपासक थे। राजगृह नगर पर भगवान की विशेष कृपा रही। भगवान ने अपनी कैवल्य अवस्था के अनेक वर्षावास राजगृह नगरी में बिताए। चेलना और श्रेणिक भगवान की उपस्थिति का पूरा लाभ उठाते थे। ___एक घटना ने चेलना के प्रति श्रेणिक का प्रेम शतगुणित कर दिया। एक दिन चेलना और महाराज श्रेणिक भगवान के दर्शनों के लिए गए। यह एक कड़कड़ाती सर्द सुबह थी। चेलना अनेक ऊनी वस्त्र धारण किए होने पर भी शीत से कांप रही थी। ऐसे में उसने एक अल्पवस्त्रधारी मुनि को ध्यानलीन देखा। उस मुनि की शीतजयी साधना से चेलना अत्यन्त प्रभावित हुई। उसने मन ही मन विचार किया-एक मैं हूं, जो ... जैन चरित्र कोश ...
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