________________
शोर सुनकर भद्रा पौषधशाला में आई। उसके पूछने पर चुलनीपिता ने सारी बात माता को बताई। तत्त्वज्ञा भद्रा सब समझ गई कि किसी देव की ही यह माया थी। उसने चुलनीपिता को शान्त और सन्तुष्ट किया और सर्वकुशलता से अवगत कराया।
चुलनीपिता ने प्रायश्चित्त से अपने व्रतों की विशुद्धि की। अनेक वर्षों तक श्रावक धर्म का पालन कर वह प्रथम देवलोक में गया। वहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष जाएगा। चुल्लशतक श्रावक
- भगवान महावीरकालीन आलंभिका नगरी का रहने वाला एक वैभवसम्पन्न सद्गृहस्थ । वह अठारह कोटि सोनयों तथा दस-दस हजार गायों के छह गोकुलों का अधिपति था। उसकी पत्नी का नाम बहुला था। पति-पत्नी ने भगवान महावीर से श्रावक धर्म की दीक्षा ली थी। एक रात्रि में जब चुल्लशतक पौषध की आराधना कर रहा था तो एक मिथ्यामति देव ने उसे भयानक उपसर्ग दिए। धर्म से चलित करने के लिए देव ने उसके तीनों पुत्रों की हत्या कर दी और उनके रक्त को कड़ाहे में उबालकर उसके शरीर पर गर्म रक्त के छींटे दिए। पर चुल्लशतक अविचलित रहा। विस्मित देव इतने से ही सन्तुष्ट न हुआ। उसने चुल्लशतक को चेतावनी दी कि वह उसके समस्त धन को गली और बाजारों में बिखेर देगा। वह अन्न के दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाएगा। चुल्लशतक के हृदय में धन का आकर्षण शेष था। सो वह चलित हो गया। अपने धन की रक्षा के लिए दौड़ा तो एक स्तंभ से टकरा गया। अपना काम करके देव अदृश्य हो गया। ___ कोलाहल सुनकर बहुला दौड़कर पौषधशाला में आई। उसने पति को शान्त किया। चुल्लशतक समझ गया कि यह देवमाया थी और वह परीक्षा में असफल हो चुका है। उसने अपने मन में बसे लोभ को धिक्कारा और अलोभ की साधना के लिए दृढ़ संकल्पी बन गया। कालान्तर में मासिक संलेखना सहित देह विसर्जित कर प्रथम स्वर्ग में गया। वहां से च्यव कर विशुद्ध संयम की आराधना कर मोक्ष में जाएगा। चेटक राजा ___ महावीरयुगीन वैशाली के अधिशास्ता तथा विश्व में गणतंत्रीय शासन प्रणाली के प्रणेता प्रथम पुरुष। वैशाली गणतंत्र में नौ मल्ली तथा नौ लिच्छवी जाति के अठारह राजा थे। महाराज चेटक उस गण के अध्यक्ष
थे।
चेटक मूलतः जैन राजा थे। भगवान महावीर की माता उनकी बहन थी। उन्होंने बारह व्रत अंगीकार किए थे। स्थूल हिंसा के त्यागी होते हुए भी उन्हें राजधर्म की रक्षा तथा मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए अनेक बार युद्धों में उतरना पड़ा। चेटक-कोणिक संग्राम इतिहास प्रसिद्ध युद्ध है। यहां चेटक की शरणागतवत्सलता के दर्शन होते हैं। उनका यह प्रण था कि वे एक दिन के युद्ध में एक ही बाण छोड़ेंगे। उनका वह एकमात्र बाण अमोघ होता था। 'चेटक-कोणिक' संग्राम के प्रथम दस दिनों में ही उन्होंने कोणिक के कालकुमार आदि दस भाइयों को धराशायी कर दिया था। आखिर कोणिक द्वारा देव सहायता प्राप्त कर लिए जाने के कारण चेटक को पराजित होना पड़ा। समाधि-मृत्यु का वरण कर वे बारहवें देवलोक में गए। ... महाराज चेटक की सात पुत्रियां थीं, जिनके नामक क्रमशः इस प्रकार हैं-1. प्रभावती, 2. पद्मावती, 3. मृगावती, 4. ज्येष्ठा, 5. शिवा, 6. सुज्येष्ठा और 7. चेलना। सुज्येष्ठा के अतिरिक्त शेष छह उस युग के प्रसिद्ध राजाओं के साथ विवाहित हुई थीं। सुज्येष्ठा कौमार्यावस्था में ही साध्वी बन गई थी।
-आवश्यक कथा ... 180 ...
... जैन चरित्र कोश ...