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भगवान ने उज्झितकुमार का पूर्वभव सुनाया जो इस प्रकार है-हस्तिनापुर नगर में सुनंद नामक राजा राज्य करता था, जिसकी एक विशाल गोशाला थी। वहीं भीम नाम का एक गुप्तचर रहता था। भीम की पत्नी का नाम उत्पला था। किसी समय वह गर्भवती हुई तो उसे गोमांस खाने का दोहद उत्पन्न हुआ। पत्नी का दोहद जानकर भीम रात्रि में छिपकर राजा की गोशाला में पहुंचा, वहां एक गाय को मारकर उसका मांस लाकर अपनी पत्नी को दिया। उसे खाकर पत्नी ने दोहद पूर्ण किया। सवा नौ मास के पश्चात् उसने एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म लेते ही उस बालक ने इतनी जोर से ध्वनि की कि गौ आदि पशु भयभीत होकर इधर-उधर दौड़ गए। इसी से उसका नाम गौत्रासक पड़ गया। बड़ा होकर वह महाक्रूरकर्मी बना। नगरजन उसके कर्मों से संत्रस्त हो गए। राजा ने उसे सुधारने की दृष्टि से उसके कन्धों पर दायित्व डालने का विचार किया और उसे अपना सेनापति नियुक्त कर दिया। वह शक्तिशाली तो था ही, अधिकार भी पा गया। इससे उसकी क्रूरता में और भी वृद्धि हो गई। रात्रि में वह गौशाला में पहुंच जाता और गायों को मारकर खा जाता। इस प्रकार उसने दुस्सह कर्मों का बन्ध किया और मरकर दूसरे नरक में गया। __ भगवान ने कहा-गौत्रासक का जीव ही इस भव में उज्झितकुमार बना है और उसने अपने क्रूर कर्मों और दुर्व्यसनों के कारण शूली का दण्ड पाया है। यहां से मरकर यह नरक में जाएगा। प्रलम्ब काल तक विभिन्न गतियों में भटकने के पश्चात् उसे सद्धर्म की प्राप्ति होगी और अन्त में वह मोक्ष भी प्राप्त करेगा।
विपाक सूत्र, प्र. श्रु., अध्ययन 2 उज्झिता
राजगृह नगर के समृद्ध सार्थवाह धन्ना की चार पुत्रवधुओं में से ज्येष्ठ, एक स्थूलबुद्धि महिला। (दखिए-धन्ना सार्थवाह) उत्तम कुमार
वाराणसी नगरी के राजा महाराज मकरध्वज का पुत्र। एक साहसी, शूर और उच्च चारित्र सम्पन्न राजकुमार । योग्य वय में कुमार ने बहत्तर कलाओं में निपुणता प्राप्त की। शिक्षा पूर्ण कर कुमार चिन्तनशील बना-मुझे देशाटन करके अपने साहस और शौर्य की परीक्षा करनी चाहिए, पर क्या इसके लिए मुझे माता-पिता की आज्ञा प्राप्त हो पाएगी? निश्चित ही मेरे माता-पिता मुझे अपने से विलग नहीं होने देंगे। मेरे लिए यही उत्तम है कि बिना किसी को सूचित किए मैं देशाटन के लिए प्रस्थान करूं और अपने साहस, शौर्य और बुद्धि की परीक्षा करूं। ऐसा निश्चय कर उत्तमकुमार एक रात्रि में बिना किसी को सूचित किए अपने नगर से प्रस्थित हो गया। गांव-नगरों और विजन वनों में भ्रमण करते हुए कुमार मेदपाट-मेवाड़ देश की राजधानी चित्रकूट में पहुंचा। उद्यान में वृक्ष की शीतल छाया में बैठकर विश्राम करने लगा। नगर-नरेश महीसेन अश्व परीक्षा के लिए कुछ अनुचरों और घोड़ों के साथ उद्यान की दिशा में आया। शेष सब अश्वों की परीक्षा कर ली गई पर उत्तम जाति के एक घोड़े की परीक्षा राजा और उसके अनुचर नहीं कर पाए। बड़ी ही विनम्रता दर्शाते हुए उत्तमकुमार राजा के निकट आया और उसने सहज रूप में ही उस अश्व की परीक्षा कर दी। राजा उत्तमकुमार की विनम्रता और कला से बहुत प्रभावित हुआ। उसका कुल-गोत्र राजा ने ज्ञात किया। राजा निःसंतान था। उसे उत्तमकुमार में अपने सुयोग्य उत्तराधिकारी के दर्शन प्राप्त हो गए। राजा ने उसे अपना पुत्र मान लिया और राजपद देना चाहा। पर उत्तमकुमार ने कहा, वह अभी देशाटन पर है। कालान्तर में वह उनके आदेश का पालन करेगा। mजैन चरित्र कोश...
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