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कुछ समय चित्रकूट में बिताकर उत्तमकुमार आगे बढ़ा। घूमते हुए वह गुजरात प्रान्त के भृगुकच्छ (भरूच) नगर में पहुंचा। वहां उसका परिचय कुबेरदत्त नामक एक समुद्री-व्यापारी से हुआ। दोनों के स्नेहसम्बन्ध सुदृढ़ बने। एक बार जब कुबेरदत्त व्यापार के लिए विदेश जा रहा था तो उसने उत्तमकुमार से अपने साथ चलने का आग्रह किया। उत्तमकुमार ने समुद्री-यात्रा को अपने लिए सुप्रसंग माना और कुबेरदत्त का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। यात्रा प्रारम्भ हुई। मार्ग में मीठा पानी लेने के लिए जहाजों को शून्य द्वीप के तट पर रोका गया। यह द्वीप लंका देश का भूभाग था और उस समय लंका पर राक्षसराज भ्रमरकेतु का साम्राज्य था। अक्सर उधर से गुजरने वाले जहाजों पर भ्रमरकेतु आक्रमण करता था और व्यापारियों को मारकर उनका धन-माल लूट लेता था। कुबेरदत्त के जहाज पर भी भ्रमरकेतु ने आक्रमण किया। उत्तमकुमार ने राक्षसराज से युद्ध किया। उत्तमकुमार जब भ्रमरकेतु से युद्ध कर रहा था तो कुबेरदत्त अपने जहाजों को लेकर आगे बढ़ गया। भ्रमरकेतु उत्तमकुमार का सामना नहीं कर पाया और पीठ दिखाकर भाग गया।
उत्तमकुमार तट पर लौटा तो उसने जहाजों को नदारद पाया। कुबेरदत्त के इस विश्वासघाती और कृतघ्नतापूर्ण व्यवहार पर उसे बहुत कष्ट हुआ। वह द्वीप पर लौट आया और यत्र-तत्र निरुद्देश्य टहलने लगा। एक देवी ने उत्तमकुमार के चारित्र की परीक्षा ली। परीक्षा में उत्तमकुमार उत्तीर्ण हुआ और प्रसन्न होकर देवी ने बारह करोड़ मूल्य की रत्नराशि उसे भेंट की। इसी द्वीप पर घूमते हुए मदालसा नामक भ्रमरकेतु की पुत्री ने उत्तमकुमार से विवाह किया। मदालसा और उत्तमकुमार तट पर घूमने आए तो उन्होंने देखा, वहां पर कुबेरदत्त अपने जहाज के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। उत्तमकुमार को देखते ही कुबेरदत्त ने अभिनय करते हुए कहा, मित्र! राक्षसराज से भयभीत बनकर मैं अपने जहाज को तट से दूर ले गया था। पर जब मुझे विश्वास हो गया कि आपके समक्ष राक्षस ठहर नहीं पाएगा तो आपको लेने के लिए समुद्र के मध्य से मैं वापिस आया हूं। मुझे क्षमा देकर अपने बड़प्पन का परिचय दीजिए और जहाज पर पधारिए जिससे हम आगे की यात्रा शुरू कर सकें। कुबेरदत्त के कपट नाटक को उसकी सरलता और सच्चाई मानकर उत्तमकुमार मदालसा और बारह करोड़ मूल्य के रत्नों के साथ जहाज पर सवार हो गया। ___ जहाज आगे बढ़ने लगे। कुबेरदत्त की दृष्टि मदालसा के रूप और बहुमूल्य हीरों पर अटक चुकी थी। उसने उत्तमकुमार को अपने पथ की बाधा माना और एक दिन सागर-दर्शन के बहाने उत्तमकुमार को जहाज के ऊपर ले जाकर समुद्र में धक्का दे दिया। तदनन्तर उसने मदालसा को लुभाने का प्रयास किया। पर मदालसा ने अपनी बुद्धिमत्ता से अपने शीलधर्म को अक्षुण्ण रखा। कुबेरदत्त का जहाज मोटपल्ली नगर के तट पर लगा। वहां का राजा नरवर्मा एक न्यायशील राजा था। अवसर साधकर मदालसा ने राजा के समक्ष कुबेरदत्त का वास्तविक चेहरा प्रकट किया तो राजा ने कुबेरदत्त को कारागृह में बन्द करवा दिया और उसका समस्त धन-माल राजकोष में भिजवा दिया।
कहावत है कि आयुष्य शेष हो तो स्वयं यमराज भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उत्तमकुमार का आयुष्य शेष था। वह एक मत्स्य की पीठ पर गिरा। मत्स्य तट पर आया तो उत्तमकुमार को नए जीवन का सा अनुभव प्राप्त हुआ। घूमता-भटकता उत्तमकुमार मोटपल्ली नगर में पहुंचा। वहां की राजकुमारी तिलोत्तमा को एक जहरीले नाग ने डस लिया था और अनेक उपचारों के पश्चात् भी उसे स्वस्थ नहीं किया जा सका था। उत्तम कुमार सर्प के विष को दूर करने का मंत्र जानता था। उसने राजकुमारी को निर्विष कर दिया। इससे राजा इतना प्रसन्न हुआ कि उसने उत्तमकुमार के साथ अपनी पुत्री का पाणिग्रहण तो किया ही, साथ ही उसे अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया। यहीं पर रहते हुए उत्तमकुमार को उसकी प्रथम पत्नी ... 70 ...
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