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________________ भगवान महावीर ने गौतम को उनके नाम से पुकारा। गौतम ने विचार किया कि मैं तो जग-विख्यात हूं। महावीर मेरा नाम जानते हैं, यह उनकी सर्वज्ञता का प्रमाण नहीं है। मेरे मन के गुह्य प्रश्न को ये अनावृत करें तो इनकी सर्वज्ञता स्वीकार की जा सकती है। गौतम के मन के द्वन्द्व को अन्तर की आंख से देख रहे महावीर ने रहस्य को अनावृत करते हुए कहागौतम ! तुम आत्मा के अस्तित्व में संदेहशील हो! परन्तु आत्मा का अस्तित्व है। वेदों में 'द' का मंत्र आता है जिसका अर्थ दमन, दान और दया किया गया है। यदि आत्मा न हो तो किसका दमन? किसको और क्यों दान? किस पर दया? इंद्रभूति को अन्तर की आंख मिल गई। वे पांच सौ शिष्यों के साथ महावीर के पास दीक्षित हो गए। महावीर से आयु में आठ वर्ष बड़े होते हुए भी वे परम विनीत थे। एक नन्हे बालक की तरह महावीर से प्रश्न करते रहते थे। वर्तमान में उपलब्ध भगवती सूत्र में ही गौतम द्वारा महावीर से पूछे गए छत्तीस हजार प्रश्नों का संकलन है। गौतम का महावीर पर दृढ़ अनुराग था। परन्तु राग ही केवलज्ञान की बड़ी बाधा है। गौतम के बाद दीक्षित हुए अनेक मुनि केवली बन गए, पर वे केवली न बन सके। इस बात से वे प्रायः खिन्न हो जाते थे। महावीर ने अनेक बार गौतम को मोहजय का उपदेश दिया। पर गौतम का मोह महावीर के परिनिर्वाण के पश्चात् ही खण्डित हो पाया। पावापुरी में विराजित भगवान महावीर ने अपने परिनिर्वाण के क्षण को सन्निकट देखकर गौतम को निकटस्थ ग्रामवासी देव शर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने भेजा। गौतम के चले जाने के पश्चात् महावीर निर्वाण को उपलब्ध हो गए। लौटते समय मध्यमार्ग में ही गौतम को यह समाचार ज्ञात हुआ। वे खेदखिन्न हो उठे। विलाप करने लगे। अन्ततः मन मुड़ा-कौन गुरु? कौन शिष्य? आत्मा ही गुरु है, आत्मा ही शिष्य है। क्षपकश्रेणी चढ़कर गौतम केवली बन गए। पचास वर्ष की अवस्था में दीक्षा लेने वाले गौतम अस्सी वर्ष की अवस्था में केवली बने और बानवे वर्ष की अवस्था में सिद्ध हुए। -तीर्थंकर चरित्र इंद्रा (आर्या) इंद्रा आर्या का सम्पूर्ण जीवन वृत्त इला आर्या के समान है। (देखिए-इला आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., तृ.वर्ग, अध्ययन 4 इक्षुकार राजा उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार इक्षुकार नगर का राजा। 'कमलावती' उसकी रानी का नाम था। राजा के पुरोहित का नाम भृगु और पुरोहित की पत्नी का नाम यशा था। भृगु के दो पुत्र थे - यशोभद्र और देवभद्र। ये छहों प्राणी पूर्वजन्म में नलिनीगुल्म विमान में देवता थे। छहों का परस्पर प्रगाढ़ प्रेम था। भृगु के पास पर्याप्त धन था। एक बार भृगुपुत्र मुनि दर्शन कर प्रबुद्ध हो गए। भृगु और यशा ने पुत्रों को घर से बांधे रखने का भरसक प्रयास किया पर उन्हें सफलता न मिली। आखिर पुत्रों के साथ ही वे भी दीक्षा लेने को तैयार हो गए। प्राचीन परम्परा के अनुसार जिस धन का कोई स्वामी न हो, उसका स्वामी राजा होता था। भृगु के घर में पीछे कोई उसके धन का स्वामी न था। परिणामतः उसने अपना सारा धन गाड़ियों में रखकर राजकोष में भिजवा दिया। महल के गवाक्ष से रानी कमलावती ने धन से भरी गाड़ियां देखीं। उसने अपने पति इक्षुकार से उस धन के विषय में पूछा। इक्षुकार ने भृगु पुरोहित के सपरिवार दीक्षित होने की बात रानी को बता दी। .. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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