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________________ इससे कमलावती का मन बड़ा प्रभावित हुआ हो। वह विरक्त बन गई। उसने धन और जीवन की नश्वरता का दर्शन अपने पति को समझाया। इससे इक्षुकार भी विरक्त हो गया। इस प्रकार भृगु, यशा, यशोभद्र, देवभद्र, कमलावती और इक्षुकार, छह व्यक्तियों ने दीक्षित होकर आत्मकल्याण किया। इकाई राठौर ___ इकाई राठौर अथवा एकादि राष्ट्रकूट प्राचीनकालीन विजयवर्धमान नामक ग्राम का स्वामी था। अन्य पांच सौ ग्रामों पर भी उसका शासन चलता था। शासन और शक्ति के मद में चूर बनकर वह महान अधर्मी बन गया। अतीव दुःसह कर्मों का संचय करके वह प्रथम नरक में गया। वहां से निकलकर मृगा ग्राम के राजा के पुत्र रूप में जन्मा। मनुष्य भव पाकर भी वह मांस पिण्ड के तुल्य था। वहां से आयुष्य पूर्ण कर नरक और निम्न जातियों में असंख्य बार जन्म-मरण कर वह कभी धर्म के निकट आएगा और क्रम से महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध होगा। (देखिये-मृगालोढ़ा) -विपाक सूत्र प्र.श्रु. अ.9 इला (आर्या) ___ भगवान पार्श्वनाथ के युग में वाराणसी नामक नगरी में इला नाम का एक धनी सार्थवाह रहता था। उसकी पत्नी का नाम इलाश्री और पुत्री का नाम इला था। एक बाद भगवान पार्श्वनाथ वाराणसी नगरी के काममहावन नामक चैत्य में पधारे। प्रभु के धर्मोपदेश से कुमारी इला संसार से विरक्त हो गई और उसने प्रभु के श्रमणीसंघ में प्रव्रज्या धारण कर ली। उसने श्रमणी प्रमखा आर्या पुष्पचला से सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों तक का अध्ययन किया तथा तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगी। ___ कालांतर में इला आर्या शरीर बकुशा बन गई। संयम में उसकी रुचि कम हो गई। फलतः उसे संघ से अलग होना पड़ा। अनालोचना की अवस्था में काल कर वह भवनपति देवों के इंद्र धरणेन्द्र की पट्टमहिषी के रूप में जन्मी। वहां उसका आयुष्य अर्द्ध-पल्योपम से कुछ अधिक है। देव गति से च्यव कर इला महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर विशुद्ध चारित्राराधना द्वारा मोक्ष प्राप्त करेगी। इला आर्या का समग्र जीवन वृत्त काली आर्या के समान ही आगम में वर्णित हुआ है। (देखिए-काली आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., तृ.वर्ग, अध्ययन 1 इलायची कुमार ____ इलावर्धन नगर के धनकुबेर श्रेष्ठी धनदत्त का इकलौता सुकुमार पुत्र । श्रेष्ठी ने अपनी कुलदेवी इलादेवी की आराधना पर इस पुत्र को पाया था। फलतः पुत्र को इलाकुमार –इलायची कुमार नाम दिया गया। इलायचीकुमार माता-पिता का आज्ञाकारी, विनम्र और मृदु-हृदयी युवक था। एक बार एक नटमण्डली इलावर्धन नगर में आई। इलायचीकुमार नाटक देखने गया। नाट्य कला प्रवीण नट-कन्या पर वह मोहित हो गया। उसने संकल्प कर लिया कि वह विवाह करेगा तो नटकन्या से करेगा अन्यथा अविवाहित ही रह जाएगा। घर पहुंचकर उसने माता-पिता को अपने निर्णय से अवगत करा दिया। पिता ने पुत्र को कुल की मान-मर्यादाएं समझाकर उसे अपना निर्णय बदलने के लिए कहा। पर इलायचीकुमार ने इसे अपनी विवशता मानते हुए पिता की बात अस्वीकार कर दी। आखिर पुत्र की प्रसन्नता के लिए धनदत्त सेठ नट के पास पहुंचा और उसकी पुत्री की याचना अपने पुत्र के लिए की। उसने उसकी पुत्री के वजन का स्वर्ण तौल कर नट को देने का प्रस्ताव किया। पर नट ने इसे अस्वीकार करते हुए तर्क दिया कि पिता की सम्पत्ति पर पलने वाले युवक को वह अपनी पुत्री नहीं देगा। उसकी पुत्री को पाने के लिए बैन चरित्र कोश ... -... 63 ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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