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________________ 原廠 $$$$$$$$$$$$$$$$$$、 {124} यस्त्विह वा उग्रः पशून्पक्षिणो वा प्राणत उपरन्धयति तमपकरुणं पुरुषादैरपि विगर्हितमत्र यमानुचराः कुम्भीपाके तप्ततैले उपरन्धयन्ति ॥ (भा.पु. 5/26/13) जो महाक्रूर पुरुष इस लोक में जीवित पशु तथा पक्षियों को रांधता ( मार कर पकाता है), राक्षसों से भी निन्दित उस निर्दयी प्राणी को परलोक में यमराज के सेवक कुम्भीपाक नरक में ले जाकर खौलते हुए तेल में रांधते हैं। [ वैदिक / ब्राह्मण संस्कृति खण्ड / 36 {125} लोभात्स्वपालनार्थाय जीविनं हन्ति यो नरः । मज्जाकुण्डे वसेत्सोऽपि तद्भोजी लक्षवर्षकम् ॥ ततो भवेत्स शशको मीनश्च सप्तजन्मसु । एणादयश्च कर्मभ्यस्ततः शुद्धिं लभेद् ध्रुवम् ॥ .पु. 2/30/31-32) जो लोभवश अपने भरण-पोषण के लिए किसी अन्य जीव का हनन करता है, वह लाख वर्ष तक मज्जा के कुण्ड में उसे ही खा कर पड़ा रहता है। अन्त में सात जन्मों तक वह शशक (खरगोश), मछली, मृग आदि योनियों में उत्पन्न होकर दुःखानुभव करता है, उपरान्त ही उसकी शुद्धि हो जाती है - यह निश्चित है । {126} निरयं याति हिंसात्मा याति स्वर्गमहिंसकः । यातनां निरये रौद्रां स कृच्छ्रं लभते नरः ॥ यः कश्चिन्निरयात् तस्मात् समुत्तरति कर्हिचित् । मानुष्यं लभते चापि हीनायुस्तत्र जायते ॥ (म.भा. 13/144/53-54) जिसका चित्त हिंसा में लगा होता है, वह नरक में गिरता है और जो किसी की हिंसा नहीं करता है, वह स्वर्ग में जाता है। नरक में पड़े हुए जीव को बड़ी कष्टदायक और भयंकर यातना भोगनी पड़ती है। यदि कभी कोई उस नरक से छुटकारा पाकर मनुष्य - योनि में जन्म ता भी है, तो वहां उसकी आयु बहुत थोड़ी होती है।
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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