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________________ 男明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 म पर भी उसकी आंखें नहीं खुलतीं। चिन्ता और बुढ़ापे के कारण उसे रोग घेर लेते हैं, पाचन# शक्ति बिगड़ जाने से भर-पेट भोजन भी वह नहीं कर सकता, इससे वह किसी काम-काज # * के लायक नहीं रहता। इस दशा में अनादर के साथ घरवालों के दिये हुए टुकड़ों पर वह * पालतू कुत्ते का-सा जीवन बिताता है। ऊर्ध्वश्वास चलने से आंखें निकल आती हैं, नाड़ियों # की गति को कफ रोक देता है,खांसने और सांस लेने में भी उसे बड़ा कष्ट होता है और कफ अटक जाने से गले से घर-घर शब्द होने लगता है। मौत के फन्दे में फंसा हुआ, चिन्तित भाई-बन्धुओं के बीच लेटा हुआ, वह प्राणी घरवालों के बार-बार बुलवाने पर भी क्लेश # के मारे नहीं बोल पाता। इस प्रकार वह अभागा, भाई-बन्धुओं को रोते-कलपते छोड़कर, ॐ यम-यातना भोगने हेतु सदा के लिए आंखें मूंद लेता है। {121} निद्रालुः क्रूरकृल्लुब्धो नास्तिको याचकस्तथा। प्रमादवान्भिन्नवृत्तो भवेत्तिर्यक्षु तामसः॥ (या. स्मृ., 3/4/139) निद्राशील, करकर्मा (प्राणियों को पीड़ा देने वाला), लोभी, नास्तिक (धर्मादि का + निन्दक), मांगने वाली, प्रमादी (कार्याकार्य-विवेकशून्य) और विरुद्धाचरण करने वाला ॐ तमोगुण-युक्त व्यक्ति मर कर तिर्यक् (पशु) की योनि में जन्म ग्रहण करता है। 职%%%%坑坑坑坑坑坑听听听听玩玩乐乐听听听听听听听织垢玩垢玩垢玩垢玩垢听听听听听听听听听听乐乐 {122} हिंस्रः स्वपापेन विहिंसितः खलः, साधुः समत्वेन भयाद् विमुच्यते। (भा. पु. 10/8/31) हिंसक दुष्ट व्यक्ति को उसके स्वयं के पाप ही नष्ट कर डालते हैं, जब कि साधु सज्जन पुरुष अपनी समता (सम-दृष्टि) से ही सब खतरों से बच जाता है। {123} न हिंसा-सदृशं पापं त्रैलोक्ये सचराचरे। हिंसको नरकं गच्छेत् स्वर्गं गच्छेदहिंसकः॥ (शि.पु. 2/5/5/20) __ चराचर-सहित समस्त त्रैलोक्य में हिंसा-समान कोई पाप नहीं है। हिंसक नरक भ * जाता है, और अहिंसक स्वर्ग प्राप्त करता है। 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明男男男男男男男 अहिंसा कोश/35]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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