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________________ Fp圳乐乐乐乐听听玩乐乐玩玩乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听听听听听听垢垢玩垢玩垢玩垢玩垢听听听听听圳垢垢s NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE {89} अपरः सर्वभूतानि दयावाननुपश्यति। मैत्रदृष्टिः पितृसमो निर्वैरो नियतेन्द्रियः।। नोवैजयति भूतानि न विघातयते तथा। हस्तपादैः सुनियतैर्विश्वास्यः सर्वजन्तुषु॥ न रज्वा न च दण्डेन न लोष्टैर्नायुधेन च। उद्वेजयति भूतानि भूक्षणकर्मा दयापरः॥ एवंशीलसमाचारः स्वर्गे समुपजायते। तत्रासौ भवने दिव्ये मुदा वसति देववत्॥ स चेत् कर्मक्षयान्मयों मनुष्येषूपजायते। अल्पाबाधो निरातङ्कः सः जातः सुखमेधते॥ सुखभागी निरायासो निरुद्वेगः सदा नरः। एष देवि सतां मार्गों बाधा यत्र न विद्यते॥ (म.भा. 13/145/37-42) निर्दय व्यक्ति के विपरीत, जो मनुष्य सब प्राणियों के प्रति दया-दृष्टि रखता है, सब को मित्र समझता है, सबके ऊपर पिता के समान स्नेह रखता है, किसी के साथ वैर नहीं # करता और इन्द्रियों को वश में किये रहता है, जो हाथ-पैर आदि को अपने अधीन रखकर * किसी भी जीव को न तो उद्वेग में डालता और न मारता ही है, जिस पर सब प्राणी विश्वास ज करते हैं,जो रस्सी डंडे, ढेले और घातक अस्त्र-शस्त्रों से प्राणियों को कष्ट नहीं पहुंचाता,जिसके ॐ कर्म कोमल एवं निर्दोष होते हैं तथा जो सदा ही दयापरायण होता है, ऐसे स्वभाव और ॥ * आचरण वाला पुरुष स्वर्ग लोक में दिव्य शरीर धारण करता है और वहां के दिव्य भवन में 3 देवताओं के समान आनन्दपूर्वक निवास करता है। फिर पुण्यकर्मों के क्षीण होने पर यदि वह # मृत्युलोक में जन्म लेता भी है, तो उसके ऊपर बाधाओं का आक्रमण अत्यन्त कम होता है। वह निर्भय हो सुख से अपनी उन्नति करता है और सुख का भागी होकर, आयास * (कष्ट)व उद्वेग से रहित जीवन व्यतीत करता है। यह सत्पुरुषों/सज्जनों का (अहिंसा का) मार्ग है, जहां किसी प्रकार की विघ्न-बाधा नहीं आने पाती है। %%%%%% %% %%%%%%%%%% %%%%%% %%%%%%% % अहिंसा कोश/25]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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