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________________ 中换城與货货货玩玩乐乐频圳坂坂纸频听垢玩垢玩垢玩垢玩垢玩垢玩垢玩垢听听听听听听听听听听 %% %% %%%%% %%% %%%%%%% %%%%%%% %%%% % {87} शुभेन कर्मणा देवि प्राणिघातविवर्जितः। निक्षिप्तशस्त्रो निर्दण्डो न हिंसति कदाचन ॥ न घातयति नो हन्ति नन्तं नैवानुमोदते। सर्वभूतेषु सस्नेहो यथाऽऽत्मनि तथा परे॥ ईदृशः पुरुषो नित्यं देवि देवत्वमश्रुते। उपपन्नान्सुखान्भोगान्सदाऽश्राति मुदा युतः॥ अथ चेन्मानुषे लोके कदाचिदुपपद्यते। एष दीर्घायुषां मार्गः सुवृत्तानां सुकर्मणाम्। प्राणिहिंसाविमोक्षेण ब्रह्मणा समुदीरितः॥ (ब्रह्म.पु. 116/54-57) (पार्वती को शंकर का कथन-) हे देवि! शुभ कर्मों वाला व्यक्ति प्राणि-वध के कार्य से दूर रहता है और वह शस्त्र व दण्ड के प्रयोग को त्याग कर किसी की भी हिंसा नहीं : करता। वह न स्वयं किसी का वध करता है, न ही किसी को प्राणि-वध हेतु प्रेरित करता है म है और न ही प्राणि-वध का अनुमोदन करता है। वह सभी प्राणियों के प्रति स्नेह-भाव बनाये रखता है। ऐसा व्यक्ति (मरकर) 'देव' बनता है और वहां उपलब्ध सुखों का सानन्द म उपभोग करता है। वह मनुष्य-योनि में आता भी है तो वहां भी सुख भोगता है। प्राणि-हिंसा का त्याग करने के कारण प्राप्त होने वाले एवं सदाचार व सत्कर्म के दीर्घ आयु वाले मार्ग का निरूपण ब्रह्मा ने किया है। {88} निर्ममश्चानहङ्कारो निर्द्वन्द्वश्छिन्नसंशयः। नैव क्रुद्ध्यति न द्वेष्टि नानृता भाषते गिरः॥ आक्रुष्टस्ताडितश्चैव मैत्रेण ध्याति नाशुभम्। वाग्दण्डकर्ममनसां त्रयाणां च निवर्तक :॥ समः सर्वेषु भूतेषु ब्रह्माणमभिवर्तते। (म.भा.12/236/34-35) जिसने ममता और अहंकार का त्याग कर दिया है, जो शीत, उष्ण आदि द्वन्द्वों को समान भाव से सहता है, जिसके संशय दूर हो गये हैं, जो कभी क्रोध और द्वेष नहीं करता, ' झूठ नहीं बोलता, किसी की गाली सुनकर और मार खाकर भी उसका अहित नहीं सोचता, ॐ सब पर मित्रभाव ही रखता है,जो मन, वाणी और कर्म से किसी जीव को कष्ट नहीं पहुँचाता है भार समस्त प्राणियो पर समानभाव रखता जEEEEEEEEEEEEEEEEE [वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/24 का प्रतिसाता अदभाव
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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