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________________ 與與與與與與與與與與與與與與與與與用兵兵與與與與與與與與與與與出 1951} अर्थमूलोऽपि हिंसां च कुरुते स्वयमात्मनः। करैरशास्त्रदृष्टैर्हि मोहात् सम्पीडयन् प्रजाः॥ (म.भा. 12/71/15) __ (भीष्म का युधिष्ठिर को उपदेश) जो धन का लोभी राजा मोहवश प्रजा से शास्त्रविरुद्ध अधिक कर (टैक्स) लेकर उसे कष्ट पहुंचाता है, वह अपने ही हाथों अपना विनाश करता है। {952} यथा मधु समादत्ते रक्षन् पुष्पाणि षट्पदः। तद्वदर्थान् मनुष्येभ्य आदद्यादविहिंसया॥ (म.भा. 5/34/17, विदुरनीति 2/17) [द्रष्टव्यः ग.पु. 1/113/5-6] जैसे भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ ही उनके मधु का ग्रहण करता है, उसी प्रकार 卐 राजा भी प्रजाजनों को अहिंसापूर्वक अर्थात् उन्हें कष्ट दिये बिना ही उनसे धन (टैक्स आदि) ले। 與乐乐頻頻頻頻¥¥¥¥¥¥¥¥¥頻頻頻出货货货货货货垢垢听听听F垢玩垢玩垢玩垢乐明明垢頻乐坂 3 {953} भृतो वत्सो जातबलः पीडां सहति भारत। न कर्म कुरुते वत्सो भृशं दुग्धो युधिष्ठिर॥ राष्ट्रमप्यतिदुग्धं हि न कर्म कुरुते महत्। यो राष्ट्रमनुगृह्णाति परिरक्षन् स्वयं नृपः॥ संजातमुपजीवन् स लभते सुमहत् फलम्। (म.भा. 12/87/21-23) (भीष्म का उपदेश-) भरतनन्दन युधिष्ठिर! जिस गाय का दूध अधिक नहीं दुहा जाता, उसका बछड़ा अधिक काल तक उसके दूध से पुष्ट एवं बलवान् हो भारी भार ढोने है * का कष्ट सहन कर लेता है; परंतु जिसका दूध अधिक दुह लिया गया हो, उसका बछड़ा कमजोर होने के कारण वैसा काम नहीं कर पाता। इसी प्रकार, राष्ट्र का भी अधिक दोहन # करने से वह दरिद्र हो जाता है; इस कारण वह कोई महान् कर्म नहीं कर पाता। जो राजा स्वयं रक्षा में तत्पर होकर समूचे राष्ट्र पर अनुग्रह करता है और उसको प्राप्त हुई आय से 卐 अपनी जीविका चलाता है, वह महान् फल का भागी होता है। वैिदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/280
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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