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________________ NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE तस्मान्न हिंसा यज्ञे स्याद् यदुक्तमृषिभिः पुरा। ऋषिकोटिसहस्त्राणि स्वैस्तपोभिर्दिवं गताः॥ तस्मान हिंसायज्ञं च प्रशंसन्ति महर्षयः। (म.पु. 143/29-30) (सूत जी का उक्त कथा के आधार पर निष्कर्ष-) इसलिये पूर्वकाल में जैसा ऋषियों ने कहा है, उसके अनुसार यज्ञ में जीव-हिंसा नहीं होनी चाहिये। हजारों करोड़ ऋषि अपने तपोबल से स्वर्गलोक को गये हैं। इसी कारण महर्षिगण हिंसात्मक यज्ञ की ॐ प्रशंसा नहीं करते। हिंसा व मांस-दान वर्जितः श्राद्ध में 呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢垢玩垢垢玩垢听听听听听听听听听听呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢 {930} न दद्यादामिषं श्राद्धे न चाधाद्धर्मतत्त्ववित्। मुन्यन्त्रैः स्यात्परा प्रीतिर्यथा न पशुहिंसया॥ नैतादृशः परो धर्मो नृणां सद्धर्ममिच्छताम्। न्यासो दण्डस्य भूतेषु मनोवाक्कायजस्य यः॥ ___ (भा. पु. 7/15/7-8) धर्म के मर्म को समझनेवाला पुरुष श्राद्ध में (खाने के लिये) मांस न दे और न स्वयं ही खाय, क्योंकि पितृगणकी तृप्ति मुनिजनोचित आहार से ही होती है, पशुहिंसा से नहीं होती। सद्धर्मकी इच्छा वाले पुरुषों के लिये सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति मन, वाणी और शरीर से दण्ड (हिंसा) का त्याग कर देना-इसके समान और कोई श्रेष्ठ धर्म नहीं है। {931} मधुपर्के पशोर्वधः .................। मांसादनं तथा श्रद्धे वानप्रस्थाश्रमस्तथा।(14) एतान् धर्मान् कलियुगे वर्ध्यानाहुर्मनीषिणः॥ (ना. पु. 1/24/14,16) कुछ धार्मिक क्रियाओं को मनीषियों ने कलियुग में वर्जनीय माना है। वे क्रियाएं म है- (1) मधुपर्क (अतिथि या दूल्हे के स्वागतार्थ की जाने वाली धार्मिक क्रिया) में पशु का वध करना, (2) श्राद्ध में मांस-भक्षण, (3) वानप्रस्थ आश्रम.....आदि आदि। 與玩乐與與與與與與與买买买乐乐乐乐乐买兵兵兵兵兵兵兵兵兵兵兵买买买 विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/272
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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