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________________ SEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN का निर्णयार्थ एक उपाय तय करके) उपरिचर (आकाशचारी राजर्षि) वसु (को मध्यस्थ मान ॐ कर उस) से प्रश्न किया। महाप्राज्ञ त्वया दृष्टः कथं यज्ञविधिनप। औत्तानपादे प्रब्रूहि संशयं छिन्धि नः प्रभो॥ (म.पु. 143/18) उत्तानपाद-नन्दन नरेश! आप तो सामर्थ्यशाली एवं महान् बुद्धिमान हैं। आपने * किस प्रकार की यज्ञ-विधि देखी है, उसे बतलाइये और हम लोगों का संशय दूर कीजिये। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FF श्रुत्वा वाक्यं वसुस्तेषामविचार्य बलाबलम्। वेदशास्त्रमनुस्मृत्य यज्ञतत्त्वमुवाच ह॥ यथोपनीतैर्यष्टव्यमिति होवाच पार्थिवः। यष्टव्यं पशुभिर्मेध्यैरथ मूलफलैरपि। हिंसा स्वभावो यज्ञस्य इति मे दर्शनागमः। तथैते भाविता मन्त्रा हिंसालिङ्गा महर्षिभिः॥ (म.पु. 143/19-21) उन ऋषियों का प्रश्न सुन कर महाराज वसु उचित-अनुचित का कुछ भी विचार न # कर, वेद-शास्त्रों का अनुस्मरण कर यज्ञतत्त्वका वर्णन करने लगे। उन्होंने कहा-'शक्ति एवं समयानुसार प्राप्त हुए पदार्थों से यज्ञ करना चाहिये। पवित्र पशुओं और मूल-फलों से भी यज्ञ किया जा सकता है। मेरे देखने में तो ऐसा लगता है कि हिंसा यज्ञ का स्वभाव ही है। इसी . ई प्रकार (तारक आदि मन्त्रों के ज्ञाता उग्रतपस्वी) महर्षियों ने हिंसासूचक मन्त्रों को उत्पन्न किया है।' इत्युक्तमात्रो नृपतिः प्रविवेश रसातलम्। ऊवचारी नृपो भूत्वा रसातलचरोऽभवत् ॥ वसुधातलचारी तु तेन वाक्येन सोऽभवत्। धर्माणां संशयच्छेत्ता राजा वसुरधोगतः॥ ___ (म.पु. 143/25-26) ऐसा कहते ही राजा वसु रसातल में चले गये। इस प्रकार जो राजा वसु एक दिन आकाशचारी थे, रसातलगामी हो गये। ऋषियों के शाप से उन्हें पाताल-चारी होना पड़ा। धर्म-विषयक संशयों का निवारण करने वाले राजा वसु इस प्रकार अधोगति को प्राप्त हुए। बEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEENA अहिंसा कोश/271]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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