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________________ NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE {929} (मत्स्य पुराण में प्राप्त कथा-) मन्त्रान् वै योजयित्वा तु इहामुत्र च कर्मसु । तथा विश्वभुगिन्द्रस्तु यज्ञं प्रावर्तयत् प्रभुः॥ दैवतैः सह संहृत्य सर्वसाधनसंवृतः। तस्याश्वमेधे वितते समाजग्मुर्महर्षयः॥ (म.पु. 143/5-6) विश्वभोक्ता सामर्थ्य-शाली इन्द्र ने एहलौकिक कर्मों में मन्त्रों को प्रयुक्त कर देवताओं के के साथ सम्पूर्ण साधनों से सम्पन्न हो यज्ञ प्रारम्भ किया। उनके उस अश्वमेध-यज्ञ के आरम्भ होने पर, उसमें महर्षि-गण उपस्थित हुए। 斯斯斯斯斯斯斯55555斯斯斯西野野野野野野野野野野真55555555555555555 महर्षयश्च तान् दृष्ट्वा दीनान् पशुगणांस्तदा। विश्वभुज ते त्वपृच्छन् कथं यज्ञविधिस्तव॥ अधर्मों बलवानेष हिंसा धर्मेप्सया तव। नव पशुविधिस्त्विष्टस्तव यज्ञे सुरोत्तम। अधर्मो धर्मघाताय प्रारब्धः पशुभिस्त्वया। (म.पु. 143/11-13) महर्षि उस दीन पशुओं को देखकर उठ खड़े हुए और वे विश्वभुग नाम के # विश्वभोक्ता इन्द्र से पूछने लगे-'देवराज'! आपके यज्ञ की यह कैसी विधि है? आप धर्म* प्राप्ति की अभिलाषा से जो जीव-हिंसा करने के लिये उद्यत हैं, यह तो महान् अधर्म है। सुरश्रेष्ठ! आपके यज्ञ में पशु-हिंसा की यह नवीन विधि दीख रही है। ऐसा प्रतीत * होता है कि आप पशु-हिंसा के व्याज से धर्म का विनाश करने के लिये अधर्म करने पर तुले है हुए हैं। यह धर्म नहीं है। यह सरासर अधर्म है। तेषां विवादः सुमहान् जज्ञे इन्द्रमहर्षिणाम्। जङ्गमैः स्थावरैः केन यष्टव्यमिति चोच्यते॥ ते तु खिन्ना विवादेन शक्त्या युक्ता महर्षयः। संधाय सममिन्द्रेण पप्रच्छुः खचरं वसुम्॥ ___(म.पु. 143/16-17) इन्द्र और उन महर्षियों के बीच स्थावरों या जङ्गमों में से किससे यज्ञानुष्ठान करना * चाहिये' इस बात को लेकर एक अत्यन्त महान् विवाद उठ खड़ा हुआ। यद्यपि वे महर्षि * शक्तिसम्पन्न थे, तथापि उन्होंने उस विवाद से खिन्न होकर इन्द्र के साथ संधि करके (उसके Sirst EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN वैदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/270
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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