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________________ NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE शतक्रतुस्तु तद् वाक्यमषिभिस्तत्त्वदर्शिभिः। उक्तं न प्रतिजग्राह मानान्मोहवशं गतः। तेषां विवादः सुमहान् शक्रयज्ञे तपस्विनाम्॥ जङ्गमैः स्थावरैवापि यष्टव्यमिति भारत। ते तु खिन्ना विवादेन ऋषयस्तत्त्वदर्शिनः। तदा संधाय शक्रेण पप्रच्छुपति वसुम्। धर्मसंशयमापन्नान् सत्यं ब्रूहि महामते॥ . (म.भा.13/अनुगीता पर्व/91/17-19) तत्त्वदर्शी ऋषियों के कहे हुए इस वचन को इन्द्र ने अभिमानवश नहीं स्वीकार किया। वे मोह के वशीभूत हो गये थे। इन्द्र के उस यज्ञ में जुटे हुए तपस्वी लोगों में इस प्रश्न को लेकर महान् विवाद खड़ा हो गया। एक पक्ष कहता था कि जंगम पदार्थ (पशु आदि) + के द्वारा यज्ञ करना चाहिये और दूसरा पक्ष कहता था कि स्थावर वस्तुओं (अन्न-फलई ॐ आदि) के द्वारा यजन करना उचित है। वे तत्त्वदर्शी ऋषि जब इस विवाद से बहुत खिन्न हो गये, तब उन्होंने इन्द्र के साथ सलाह लेकर इस विषय में राजा उपरिचर वसु से पूछामहामते! हमलोग धर्म-विषयक संदेह में पड़े हुए हैं। आप हमसे सच्ची बात बताइये। महाभाग कथं यज्ञेष्वागमो नपसत्तम। यष्टव्यं पशुभिर्मुख्यैरथो बीजै रसैरिति॥ तच्छ्रुत्वा तु वसुस्तेषामविचार्य बलाबलम्। योपनीतैर्यष्टव्यमिति प्रोवाच पार्थिवः॥ एवमुक्त्वा स नपतिः प्रविवेश रसातलम्। उक्त्वाऽथ वितथं प्रश्नं चेदीनामीश्वरः प्रभुः॥ (म.भा.13/अनुगीता पर्व/91/21-23) महाभाग नृपश्रेष्ठ! यज्ञों के विषय में शास्त्र का मत कैसा है? मुख्य-मुख्य पशुओं द्वारा यज्ञ करना चाहिये अथवा बीजों एवं रसों द्वारा? यह सुन कर राजा वसु ने उन दोनों पक्षों + के कथन में कितना सार या असार है, इसका विचार न करके यों ही बोल दिया कि जब जो ॐ वस्तु मिल जाए, उसी से यज्ञ कर लेना चाहिये। इस प्रकार कह कर, असत्य निर्णय देने के * कारण चेदिराज वसु को रसातल में जाना पड़ा। ¥¥¥¥%%%¥听听听听听听听听听听听听巩巩巩垢玩垢玩垢听听听听听垢听听听听听听听听听巩巩巩巩F8 REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN अहिंसा कोश/269]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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