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________________ 宝宝%%%¥¥乐巩巩巩巩巩巩%%%%%%呢呢呢呢呢呢明明明明明明明明明以 {846} अहिंसा सत्यवचनं सर्वभूतानुकम्पनम्। शमो दानं यथाशक्ति गार्हस्थ्यो धर्म उत्तमः॥ ___ (म.भा. 13/141/25) किसी भी जीव की हिंसा न करना, सत्य बोलना, सब प्राणियों पर दया करना, मन और इन्द्रियों पर काबू रखना तथा अपनी शक्ति के अनुसार दान देना-यह सब गृहस्थॐ आश्रम के उत्तम धर्म हैं। {847} कर्मणा मनसा वाचा बाधते यः सदा परान्। नित्यं कामादिभिर्युक्तो मूढधीः प्रोच्यते तु सः॥ __ (ना. पु. 1/4/73) जो व्यक्ति मन, वचन व कर्म से दूसरों को पीड़ा देता है, और सदा काम-भोगों में आसक्त रहता है, वह मूढबुद्धि कहा जाता है। ·过宝听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {848} न संशयं प्रपद्येत नाकस्मादप्रियं वदेत्। नाहितं नानृतं चैव न स्तेनः स्यान्न वार्धषी॥ (या. स्मृ., 1/6/132) गृहस्थ संशयपूर्ण (प्राण-विपत्ति के सन्देहवाले) कर्म में प्रवृत्त न हो, निष्कारण # अप्रिय वचन न बोले, अहितकारी तथा अनृत (असत्य) वचन भी (अकस्मात्) न बोले। * चोरी न करे तथा निषिद्ध सूद से जीविका न चलावे। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听垢 {849) सतां धर्मेण वर्तेत क्रियां शिष्टवदाचरेत्। असंक्लेशेन लोकस्य वृत्तिं लिप्सेत वै द्विज॥ (म.भा. 3/209/44;12/235/26 में परिवर्तित अंश के साथ) मनुष्य को चाहिये कि वह सत्पुरुषों के धर्म का पालन करे, शिष्ट पुरुषों के समान ॐ बर्ताव करे और जगत् में किसी भी प्राणी को कष्ट दिये बिना जिससे जीवन-निर्वाह हो # सके, ऐसी आजीविका प्राप्त करने की इच्छा करे। 第明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明、 विदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/240
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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