SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ AAEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEma 18500 न हिंस्यात्सर्वभूतानि नानृतं वा वदेत्वचित्। नाहितं नाप्रियं ब्रूयान स्तेनः स्यात्कथञ्चन॥ (कू.पु. 2/16/1) गृहस्थ को चाहिए कि वह किसी भी प्राणी की हिंसा न करे और न ही असत्य बोले। वह न तो अहितकारी व अप्रिय भाषण करे, और न ही कभी चोरी करे। {851) गृहस्थधर्मो नागेन्द्र सर्वभूतहितैषिता॥ (म.भा. 12/359/7) समस्त प्राणियों के हित की रक्षा करना गृहस्थ का धर्म है। ¥¥¥¥¥¥¥¥听听听听听听听听听听听听听听听听垢玩垢玩垢玩垢听听听听听听听听听听听听听听听斯加 {852} द्वेषं दम्भं च मानं च क्रोधं तैक्ष्ण्यं च वर्जयेत्॥ (म.स्मृ. 4/163) गृहस्थ द्वेष, दम्भ, अभिमान, क्रोध और क्रूरता का त्याग करे। {853} ज्ञातिसम्बन्धिमित्राणि व्यापन्नानि युधिष्ठिर। समभ्युद्धरमाणस्य दीक्षाऽऽश्रमपदं भवेत्॥ (म.भा. 12/66/8) जो संकट में पड़े हुए सजातियों, सम्बन्धियों व मित्रों का उद्धार करता है, उसे वानप्रस्थ आश्रम-धर्म के पालन से मिलने वाले पद की प्राप्ति होती है। {854} कर्मणा मनसा वाचा यत्नाद्धर्मं समाचरेत्। अस्वयं लोकविद्विष्टं धर्म्यमप्याचरेन्न तु॥ (या. स्मृ., 1/6/156) गृहस्थ ऐसे धर्म का भी आचरण न करे जो स्वर्ग को न देने वाला तथा लोक से 卐 * विद्वेष कराने वाला हो। %% %%% %% %% % % % % %% %%%%%% % %% %%%% $ अहिंसा कोश/241]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy