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________________ E乐乐乐乐乐乐玩¥¥¥¥巩巩巩巩巩巩职职¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥%%%%%% अहिंसा और शूद्र वर्ण {843} अहिंसकः शुभाचारो दैवतद्विजवन्दकः। शूद्रो धर्मफलैरिष्टैः स्वधर्मेणोपयुज्यते॥ __(म.भा.13/141/ पृ.5921) शूद्रों को अहिंसक, सदाचारी और देवों व ब्राह्मणों का पूजक होनी चाहिए। ऐसा शूद्र धर्म-पालन कर अभीष्ट धर्म-फलों का भागी होता है। अहिंसा/अहिंसक आचरण: ब्रह्मचर्य आश्रम में {844} अप्रियं न वदेजातु ब्रह्मसूत्री विनीतवाम्। (ग.पु. 1/96/37) ब्रह्मसूत्रधारी ब्रह्मचारी विनय-संपन्न रहे और कभी अप्रिय भाषण न करे। 端¥¥¥¥¥¥¥¥¥妮听听听听玩听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 अहिंसा/ अहिंसक आचरण: गृहस्थ आश्रम में ___{845} विभागशीलो यो नित्यं क्षमायुक्तो दयापरः। देवतातिथिभक्तश्च गृहस्थः स तु धार्मिकः।। दया लज्जा क्षमा श्रद्धा प्रज्ञा योगः कृतज्ञता। एते तस्य गुणाः सन्ति संगृही मुख्य उच्यते।। ___ (द. स्मृ., 2/48-49) जो नित्य बांट कर खाने के स्वभाव वाला, क्षमा से युक्त, दया-परायण तथा देवता है व अतिथियों का भक्त गृहस्थ होता है, वही गृही वस्तुतः परम धार्मिक होता है। जिस गृहस्थ + में दया, लज्जा, क्षमा, श्रद्धा, प्रज्ञा, योग, कृतज्ञता-ये गुण विद्यमान होते हैं, वही गृहस्थ सब प्र में प्रमुख व परम प्रशस्त होता है। 巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩乐: अहिंसा कोश/239]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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