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________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐乐¥¥¥¥¥¥¥明明明明明明明明明明明明明明明明明明明? हिंसा के लिए प्रायः अनुर्वरा भूमिः निर्धनता 垢玩垢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听 ___{613} असतः श्रीमदान्धस्य दारिद्र्यं परमञ्जनम्। आत्मौपम्येन भूतानि दरिद्रः परमीक्षते॥ यथा कण्टकविद्धाङ्गो जन्तोर्नेच्छति तां व्यथाम्। जीवसाम्यं गतो लिङ्गैर्न तथाविद्धकण्टकः॥ दरिद्रो निरहंस्तम्भो मुक्तः सर्वमदैरिह। कृच्छं यहृच्छयाऽऽप्नोति तद्धि तस्य परं तपः॥ नित्यं क्षुत्क्षामदेहस्य दरिद्रस्यान्नकांक्षिणः। इन्द्रियाण्यनुशुष्यन्ति हिंसाऽपि विनिवर्तते॥ ___(भा.पु. 10/10/13) जो असत्पुरुष ऐश्वर्य के मद में अन्धा हो रहा हो, उसके लिये दरिद्रता ही उत्तम + अञ्जन है (अर्थात् दरिद्र होना ही उसके लिए कल्याण कारक है क्योंकि तभी उसको दरिद्रता # के दुःख की अनुभूति होने से उसकी आंखें खुल सकती है और तब वह हिंसक कार्यों से * सहजतया विरत हो सकता है।)। क्योंकि दरिद्र पुरुष अन्य जीवों को अपने समान देखता है। है जिस पुरुष के अङ्ग में कांटा गड़ता है, वह जैसे अपनी तथा दूसरों जीवों की पीड़ा की है # तुल्यता का अंदाजा करके दूसरों के लिये उसका व्यथा का न होना चाहता है, वैसे ही वह पुरुष, जिसे कांटा लगने की व्यथा का अनुभव नहीं हैं, नहीं चाहता। दरिद्र पुरुष अहंकार से भ होने वाला औद्धत्य और सब प्रकार के मदों से रहित होता है। उसे दैवयोग से जो कष्ट प्राप्त है होता है, वही उसका परम तप है। जिसका शरीर क्षुधा से क्षीण हो जाता है और जो सर्वदा अन्न की चाह में रहता है, ऐसे दरिद्र पुरुष की इन्द्रियां शीघ्र ही शुष्क हो जाती हैं और उसमें 9 हिंसावृत्ति भी नहीं रह जाती। [तात्पर्य यह है कि निर्धनता की स्थिति में रोजी-रोटी कमाने की है * सार्वकालिक चिन्ता के कारण उसके मन में हिंसा, वैर-विरोध के भाव उठ ही नहीं पाते।] 明%%%$$$垢听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听圳乐乐团 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 अहिंसा कोश/173]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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