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________________ 5 “男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男 अहिंसा और दया/आनृशंस्य धर्म 55 [दया, करुणा आदि अहिंसा रूपी बीज से उत्पन्न वृक्ष की शाखा-प्रशाखाएं ही हैं। दया, करुणा व अनुकम्पा के भाव को विकसित किए बिना 'अहिंसक होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसी सन्दर्भ में कुछ विशिष्ट शास्त्रीय उद्धरण यहां प्रस्तुत हैं-] अहिंसा =आत्मवत् व्यवहार)= दया 5 555 {614} सर्वभूतदयावन्तो विश्वास्याः सर्वजन्तुषु॥ त्यक्तहिंसा-समाचारास्ते नराः स्वर्गगामिनः। (म.भा. 13/144/9-10) __जो सब प्राणियों पर दया करने वाले तथा सब जीवों के विश्वासपात्र होते हैं और जिन्होंने हिंसामय आचरण को त्याग दिया है, इस प्रकार वे (अहिंसा के निषेधात्मक व विधेयात्मक-दोनों पक्षों का अनुष्ठान करने वाले) मनुष्य ही स्वर्ग में जाते हैं। ; 卐 ¥职编织乐乐%%%¥¥頻頻乐乐编织乐乐频听听听玩玩乐乐玩玩乐乐乐乐圳乐乐坎坎坎坎垢玩垢玩垢玩垢% $$$ {615} आत्मवत्सर्वभूतेषु यो हिताय प्रवर्तते। अहिंसैषा समाख्याता वेदसंविहिता च या॥ ____ (कं. पु. 1/(2)/55/15) सभी प्राणियों में आत्मवत् दृष्टि रखते हुए उनका हितकारी कार्य करना- यही 'अहिंसा' है जो 'वेद' में प्रतिपादित है। $$$$$$$ {616} परस्मिन् बन्धुवर्गे वा मित्रे द्वेष्ये रिपौ तथा। आत्मवद् वर्त्तितव्यं हि दयैषा परिकीर्तिता। (अ. स्मृ. 41) पराये लोग/शत्रुओं या बन्धुवर्ग के प्रति, मित्र या अपने से द्वेष रखने वाले के प्रति जो आत्मवत् व्यवहार है, वही 'दया' कही गई है। $$$$$ %%%%%%% %%%%%%%%%%%%% %% % %% %%%%%%%% वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/174
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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