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________________ 男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男%%%%%%%%% {558} देवि वाग् यत्ते मधुमत् तस्मिन् माधाः।। (ता.ब्रा. 1/3/1) स्वयं वाग्देवी में जो माधुर्य है, वह मनुष्य की वाणी में भी स्थापित होना चाहिए। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 अहिंसकः वाणी-प्रयोग में कुशल/अप्रमत्त {559} वचनं त्रिविधं शैल लौकिके वैदिके तथा। सर्वं जानाति शास्त्रज्ञो निर्मलज्ञानचक्षुषा॥ असत्यमहितं पश्चात्साम्प्रतं श्रुतिसुन्दरम्। सुबुद्धं शत्रुर्वदति न हितं च कदाचन ॥ आपातप्रीतिजनकं परिणामसुखावहम्। सत्यसारं हितकरं वचसां श्रेष्ठमीप्सितम्॥ एवं च त्रिविधं शैल, नीतिशास्त्रनिरूपितम्। (ब्र.वै. 1/39/53-57) ___ (वशिष्ठ ऋषि का हिमवान् पर्वत को कथन-) लोक में वेद में तीन प्रकार के वचन माने गये हैं। शास्त्रज्ञ पुरुष अपनी निर्मल ज्ञान-दृष्टि से उन सभी को जानता है। पहले प्रकार का वचन वह होता है जो पहले कानों में मधुर लगता है और बोधगम्य 卐 भी होता है, किन्तु परिणाम में असत्य व अहितकर सिद्ध होता है। ऐसा वचन शत्रु ही कहता # है। दूसरे प्रकार का वचन वह है जो प्रारम्भ में भले ही दुःखदायक प्रतीत हो, किन्तु परिणामतः सुखदायक होता है। यह वचन दयालु व धर्म-रत पुरुष अपने भाई-बन्धुओं को समझाने के लिए प्रयुक्त करते हैं। तीसरे प्रकार का वचन कानों में पड़ते ही अमृत के समान 5 मधुर प्रतीत होता है और परिणाम में भी सुखद होता है। ऐसा वचन सत्यसार, हितकारी व म अभीष्ट माना गया है। हे शैलराज! इस प्रकार नीति-शास्त्र में तीन प्रकार के वचन कहे गये क हैं। (इनका अवसरानुरूप प्रयोग करना चाहिए तथा दूसरे व तीसरे वचन को ही हिंसा-दोष 5 से रहित समझना चाहिए।) 乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听巩巩巩巩巩巩巩听听听听听听听听听听听 अहिंसा कोश/157]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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