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{553} परापवादं पैशुन्यमनृतं च न भाषते। अन्योद्वेगकरं वाऽपि तोष्यते तेन केशवः॥
(वि.पु. 3/8/13) ___ जो पुरुष दूसरों की निंदा, चुगली अथवा मिथ्या-भाषण नहीं करता तथा ऐसा वचन भी नहीं बोलता जिससे दूसरों को खेद हो, उससे निश्चय ही भगवान् केशव प्रसन्न रहते हैं।
{554} ये प्रियाणि प्रभाषते प्रियमिच्छंति सत्कृतम्। श्रीमन्तो वंद्यचरिता देवास्ते नरविग्रहाः॥
(शु.नी. 1/170) जो लोग मीठी वाणी बोलते हैं और अपने प्रिय का सत्कार करना चाहते हैं, ऐसे प्रशंसनीय चरित वाले लोग मनुष्य रूप में देवता ही हैं।
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{555} विचक्षणवतीं वाचं भाषन्ते चनसितवतीं विचक्षयन्ति।
(गो. ब्रा. 2/2/22) ब्रह्मवादी लोग सत्य तथा प्रिय वाणी बोलते हैं।
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{556} हितप्रियोक्तिभिर्वक्ता, दाता सन्मानदानतः।
(व्या. स्मृ. 4/60) हितकारी प्रिय वचन बोलने वाला ही श्रेष्ठ वक्ता है, सम्मानपूर्वक देने वाला ही श्रेष्ठ दाता है।
___{557} हे जिह्वे कटुकस्नेहे, मधुरं किं न भाषसे। मधुरं वद कल्याणि, लोकोऽयं मधुरप्रियः॥
(चाणक्य-नीतिशास्त्र, द्वितीय शतक- 173) हे जिह्वा! कडुआ बोलना ही क्यों अच्छा लगता है? तू मधुर क्यों नहीं बोलती? तू तो के लोगों का कल्याण करने वाली हैं! तू मधुर बोल, क्योंकि यह दुनिया मधुरता को चाहती है।
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वैिदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/156