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________________ % % % %% %%%% %%%%%% %%%% % % % %% % {512} वर्णिनां हि वधो यत्र, तत्र साक्ष्यनृतं वदेत्।। ___(या. स्मृ., 2/5/83) जहां (सत्य बोलने से) चारों वर्गों में से किसी का वध होता हो, वहां साक्षी (गवाह) (उनकी रक्षा-हेतु)असत्य बोले। {513} प्राणत्राणेऽनृतं वाच्यमात्मनो वा परस्य च। (म.भा. 12/34/25) अपने या दूसरों के प्राण बचाने के लिये, गुरु के लिये असत्य बोलना उचित है। हिंसक वचनः कटुवचन F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐贝贝听听听听听听听听听听听听听 {514} रोहते सायकैर्विद्धं वनं परशुना हतम्। वाचा दुरुक्तं बीभत्सं न संरोहति वाक्क्षतम्॥ (म.भा. 5/34/78, विदुरनीति 2/78; पं.त. 3/111 में आंशिक परिवर्तन के साथ) बाणों से बिंधा हुआ तथा फरसे से काटा हुआ वन भी अंकुरित हो जाता है; किंतु कटु वचन के रूप में वाणी से किया हुआ भयानक घाव (कभी) नहीं भरता। ___{515} वाक्सायका वदनान्निष्पतन्ति, पैराहतः शोचति रात्र्यहानि। परस्य नामर्मसु ते तपन्ति, तान् पण्डितो नावसृजेत् परेषु॥ (म.भा. 1/87/11; 5/34/80, तथा 2/66/7 एवं 12/299/9 में; वि. ध. पु. 3/233/280 और म.पु. 36/11 में भी आंशिक परिवर्तन के साथ) दुष्ट मनुष्यों के मुख से कटुवचन रूपी बाण सदा छूटते रहते हैं, जिनसे आहत होकर ॥ मनुष्य रात-दिन शोक व चिन्ता में डूबा रहता है। वे कटुवचन रूपी बाण दूसरों के मर्मस्थानों : के पर ही चोट करते हैं। अतः विद्वान पुरुष दूसरे के प्रति ऐसी कठोर वाणी का प्रयोग न करे। 乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 वैदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/146
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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