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________________ 他男男男%%%%%%%%%%% %%%%%%%%%% %%%%%%% ___{510} अकूजनेन चेन्मोक्षो नावकूजेत् कथंचन। अवश्यं कूजितव्ये वा शङ्केरन् वाप्यकूजनात्॥ श्रेयस्तत्रानृतं वक्तुं सत्यादिति विचारितम्। यः पापैः सह सम्बन्धान्मुच्यते शपथादपि॥ न तेभ्योऽपि धनं देयं शक्ये सति कथंचन। पापेभ्यो हि धनं दत्तं दातारमपि पीडयेत्॥ ___ (म.भा. 12/109/15-17) यदि न बताने से लुटेरों से किसी धनी का बचाव हो जाता हो तो किसी तरह वहां ॐ कुछ बोले ही नहीं, परन्तु यदि बोलना अनिवार्य हो जाय और न बोलने से लुटरों के मन में [ संदेह पैदा होने लगे तो वहां सत्य बोलने की अपेक्षा झूठ बोलने में ही कल्याण है -यही इस विषय में विचार पूर्वक निर्णय कर्तव्य है। यदि शपथ खा लेने से पापियों के हाथ से छुटकारा मिल जाये तो वैसा ही करे। जहां तक वश चले, किसी तरह भी पापियों के हाथ में धन न फ जाने दे; क्योंकि पापाचारियों को दिया हुआ धन दाता को ही पीड़ित करता है। 日¥¥¥¥听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听圳听听听听听听出职报 $听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ___{511} तद्वदन् धर्मतोऽर्थेषु जाननप्यन्यथा नरः। न स्वर्गाच्च्यवते लोकाद् दैवीं वाचं वदन्ति ताम्॥ शूद्रविक्षत्रविप्राणां यत्रतॊक्तौ भवेद्वधः। तत्र वक्तव्यमनृतं तद्धि सत्याद्विशिष्यते॥ (म.स्मृ.-8/103-104) तथ्य को जानता हुआ धर्म (दया, जीवरक्षा आदि) के निमित्त से प्रस्तुत अवसर पर अन्यथा कहने वाला मनुष्य स्वर्गलोक से भ्रष्ट नहीं होता अर्थात् धर्मबुद्धि से असत्य अ साक्षी देने वाले का स्वर्ग नहीं बिगड़ता है। (मनु आदि महर्षिगण) उस वाणी को दैवी (देव ॥ सम्बन्धिनी) वाणी कहते हैं। अत: जहां सत्य कहने पर शूद्र वैश्य, क्षत्रिय या ब्राह्मण को प्राणदण्ड (फांसी) हो सकता हो; वहां असत्य कहना (गवाही देना) चाहिये, क्योंकि वह * (असत्य कहना) सत्य कहने से श्रेष्ठ है। . 明明明明听听听听听听听听听听听听听听乐乐玩玩乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐 अहिंसा कोश/145]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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