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________________ 過 出 {493} यस्य कायगतं ब्रह्म मद्येनाप्लाव्यते सकृत् । तस्य व्यपैति ब्राह्मण्यं शूद्रत्वं च स गच्छति ॥ (म.स्मृ. 11/95) जिस ब्राह्मण का शरीरस्थ ब्रह्म (वेद-संस्कार रूप से अवस्थित उसका जीवात्मा) एक बार भी मद्य से आप्लावित होता है अर्थात् जो ब्राह्मण एक बार भी मद्य पीता है, तो उसका ब्राह्मणत्व नष्ट हो जाता है तथा वह शूद्रत्व को प्राप्त करता है । {494} यक्षरक्षः पिशाचान्नं मद्यं मांसं सुरासवम् । तद् ब्राह्मणेन नात्तव्यं देवानामश्नता हविः ॥ (म.स्मृ. 11/95) मद्य, मांस, सुरा और आसव- ये चारों यक्ष-राक्षसों तथा पिशाचों के अन्न (भक्ष्य पदार्थ) हैं, अत एव देवताओं के हविष्य खाने वाले ब्राह्मणों को उनका भोजन (पान) नहीं करना चाहिये । {495} ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुर्वङ्गनागमः । महान्ति पातकान्याहुः संयोगश्चैव तैः सह ॥ (37.g. 168/24) ब्रह्महत्या, मदिरापान, चोरी, गुरुपत्नी - समागम करना तथा ऐसे व्यक्तियों के साथ संयोग (मेलजोल आदि ) - ये पांचों कार्य महापातक कहे गये हैं । {496} यस्त्विह वै विप्रो राजन्यो वैश्यो वा सोमपीथस्तत्कलत्रं वा सुरां व्रतस्थोऽपि वा पिबति प्रमादतस्तेषां निरयं नीतानामुरसि पदाऽऽक्रम्यास्ये वह्निना द्रवमाणं कार्ष्णायसं निषिञ्चन्ति ॥ (भा.पु. 5/26/29) जो सोमरस पीनेवाला ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा उनकी स्त्री यज्ञव्रत ग्रहण करके भी प्रमादवश मदिरा पीते हैं, उन्हें यम के दूत नरक में ले जाते और उनकी छाती पर पांव रख कर उनके मुंह में गलाया हुआ गरम लोहा डालते हैं । 原出, [वैदिक / ब्राह्मण संस्कृति खण्ड / 140 原廠
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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