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m 3 ____{490} परिभूतो भवेल्लोके मद्यपो मित्रभेदकः। सर्वकालमशुद्धश्च सर्वभक्षस्तथा भवेत्॥ विनष्टो ज्ञानविद्वद्भ्यः सततं कलिभावगः। परुषं कटुकं घोरं वाक्यं वदति सर्वशः॥
__ (म.भा.13/145/पृ. 5987) मदिरा पीने वाला पुरुष जगत में अपमानित होता है। मित्रों में फूट डालता है, सब कुछ खाता और हर समय अशुद्ध रहता है। वह स्वयं हर प्रकार से नष्ट होकर विद्वान् विवेकी में पुरुषों से झगड़ा किया करता है। सर्वथा रूखा, कड़वा और भयंकर वचन बोलता रहता है।
अहिंसकः मदिरा व मांस का त्यागी
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{491} सुरां वै मलमन्नानां पाप्मा च मलमुच्यते। तस्माद् ब्राह्मणराजन्यौ वैश्यश्च न सुरां पिबेत्॥
- (म.स्मृ. 11/93; वि. ध. पु. 3/234/41) सुरा (मदिरा) अन्नों (खाद्य पदार्थों) का मल है और इसे खाने वाला पापी भी मल कहा जाता है, इस कारण से ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों को सुरा नहीं पीना चाहिये।
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अपेयं वाऽप्यपेयञ्च तथैवास्पृश्यमेव च। द्विजातीनामनालोच्यं नित्यं मद्यमिति स्थितिः॥ तस्मात्सर्वप्रयत्नेन मद्यं निन्द्यञ्च वर्जयेत्॥ पीत्वा पतितः कर्मभ्यो न सम्भाष्यो भवेद् द्विजैः॥
(कू.पु. 2/17/41-42; प.पु. 3/56/44) सभी द्विजातियों के लिए मद्य एक ऐसी वस्तु है जो कभी भी पीने, छूने, यहां तक है कि देखने के योग्य भी नहीं है-यह सर्वसम्मत तथ्य है। इसलिए द्विजातियों को चाहिए कि फ किसी भी तरह मद्य का त्याग करें। जो मद्य पीता है, वह कर्म से पतित हो जाता है और र उससे भाषण भी नहीं करना चाहिए।
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अहिंसा कोश/139]