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________________ 他身男男男男%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% %%%% {412} सद्वाऽसद् वा परीवादो ब्राह्मणस्य न शस्यते। नरकप्रतिष्ठास्ते वै स्युर्य एवं कुर्वते जनाः॥ (म.भा. 5/45/8) सच्ची हो या झूठी, दूसरों की निन्दा करना ब्राह्मण को शोभा नहीं देता। जो लोग दूसरों की निन्दा करते हैं, वे अवश्य ही नरक में पड़ते हैं। {413} परनिन्दा विनाशाय, स्वनिन्दा यशसे परम्। (ब्र.वै. 4/41/7) पराई निन्दा करने से विनाश होता है और अपनी निन्दा परम यश प्रदान करती है। 明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {414} न चात्मानं प्रशंसेद्वा परनिन्दां च वर्जयेत्॥ (प.पु. 3/55/35) न तो स्वयं की प्रशंसा करे और न ही पर-निन्दा में प्रवृत्त हो। {415} आत्मनिन्दाऽऽत्मपूजा च परनिन्दा परस्तवः। अनाचरितमार्याणां वृत्तमेतच्चतुर्विधम्॥ __ (म.भा. 8/35/45) वाणी द्वारा अपनी निन्दा व प्रशंसा तथा परायी निन्दा व प्रशंसा करना- इन चार म प्रकार के आचरणों को श्रेष्ठ पुरुष कभी नहीं करते। “乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 (वैदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/116
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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