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________________ TH%%%%%%乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐¥¥¥¥¥¥乐乐乐 अहिंसाः आहार-सेवन में [आहार हमारे शरीर को तो पुष्ट करता ही है, साथ ही हमारी बुद्धि को भी प्रभावित करता है। सात्त्विक आहार से हमारे अन्दर अहिंसात्मक मनोभाव पोषित होते हैं, किन्तु तामसिक आहार से हिंसात्मक मनोभाव ही जागृत होते हैं। कुछ तामसिक पदार्थ तो सीधे हिंसा से जुड़े होते हैं, उन्हें तो सर्वथा त्याज्य माना गया है। इस सन्दर्भ में ॥ ब्रह्मचारी व संन्यासी को तो और भी अधिक सावधान रहने के लिए कहा गया है। इसी दृष्टि से मद्य, मांस आदि का सेवन शास्त्रों में वर्जित है। इस सन्दर्भ में प्राचीन भारतीय वांग्मय के कुछ उपयोगी उद्धरण यहां प्रस्तुत हैं-] हिंसा-दोषः मांस-भक्षण में अनिवार्य {416) 听听听听听听听听听听 听听听听听听听听听听听听听听玩垢累垢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसमुत्पद्यते क्वचित्। न च प्राणिवधः स्वर्ग्यः तस्मान्मांसं विवर्जयेत्॥ (म.स्मृ. 5/48) जीवों की बिना हिंसा किये, कहीं भी मांस नहीं उत्पन्न हो सकता है और जीवों की + हिंसा कभी स्वर्ग-प्राप्ति का साधन भी नहीं है, (अपितु नरक-प्राप्ति का साधन है) अतः मांस को छोड़ देना (नहीं खाना) चाहिये। 听听听听听听听听听 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {417} न हि मांसं तृणात् काष्ठादुपलाद् वापि जायते। हत्वा जन्तुं ततो मांसं तस्माद् दोषस्तु भक्षणे॥ (म.भा. 13/115/24) तृण से, काठ से अथवा पत्थर से मांस नहीं पैदा होता है, वह जीव की हत्या करने पर ही उपलब्ध होता है; अतः उसके खाने में (हिंसा-जनित) महान् दोष होता ही है। {418} यदि चेत् खादको न स्यान तदा घातको भवेत्। घातकः खादकार्थाय तद् घातयति वै नरः॥ (म.भा. 13/115/29) यदि कोई भी मांस खानेवाला न हो तो पशुओं की हिंसा करने वाला भी कोई न रहे; अ क्योंकि हत्यारा मनुष्य मांस (खाने के लिए या) खानेवालों के लिये ही तो पशुओं की हिंसा करता है। % %%%%%%%%%% %%%%%%%%%%%%%%%%% % अहिंसा कोश/117]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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