SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भक्षरमातृकाध्यान वृहत् जैन शब्दार्णव अक्षरमातृकाध्यान प्राकृतभाषा की वर्णमाला में ३३ व्यञ्जन, हुए चिन्तये । कमल को प्रफुल्लित और २७ स्वर और ४ योगवाह, सर्व ६४ मूल आकाशमुख चिन्तवन करै।इसस्वरावलीको अक्षर हैं और इनके परस्पर के संयोग से जो प्रत्येक पत्र पर चक्राकार घूमता हुआ ध्यान मूलाक्षरीसहितसंयोगीअक्षरबनतेहैं उनकी करै । "हृदय-स्थान" पर २४ दल कमल संख्याएककम एकट्ठी अर्थात् १८४४६७४४० कर्णिका सहित का चिन्तवन करै । कर्णिका ७३७०६५५१६१५ ( एक सौ चौरासी संख, और २४ पत्रों पर क्रमसे क ख ग घ आदि छयालीसपद्म, चौहत्तरनील, चालीसखर्ब, म तकके २५ व्यञ्जन चिन्तवे। इस कमल का तिहत्तर अर्ब, सत्तर कोटि, पिचान लक्ष, मुख नाभि कमल की ओरको पाताल मुख इक्यावन सहस्र, छह सौ पन्द्रह ) है ॥ चिन्तवन करै।फिर अष्टदल "मुखकमल" का संस्कृत भाषा की अक्षरमाला में ३३ व्य- चिन्तवनकरै और "नाभिकमल"के समान अन, २२ स्वर (५हस्व, दीर्घ और प्लुत), इसके प्रत्येक पत्र पर य र आदि ह तक के ४ योगवाह और ४ यम अर्थात् युग्माक्षर, आठ अक्षर क्रम से चक्राकार घूमते हुए सर्व ६३ मूलाक्षर हैं। ध्यान करै। इस प्रकार स्थिर चित्तसे किये गये हिन्दी भाषा की देवनागरी अक्षरावली इस अक्षरावली के ध्यानको "अक्षर-मातृका" में ३३व्यञ्जन, १६ स्वर और ३युग्माक्षर सर्व या "वर्णमातृका” ध्यान कहते हैं । इस ५२ अक्षर हैं । उर्दू भाषा में सर्व ३८, अरबी | ध्यान से ध्याता कुछ काल में पूर्ण श्रुत-- भाषामें २८, अंग्रेज़ी भाषा में २६, फ़ारसी शान का पारगामी हो सकता है, तथा भाषा में २४, फ़िनिक भाषा में केवल २० क्षयरोग, अरुचिपना, अग्निमन्दता, कुष्ठ, अक्षर हैं । इसीप्रकार जितनी अन्य भाषाएँ उदर रोग, और कास श्वास आदि रोगों देश देशान्तरों में देशभेद व कालभेद से को जीतता है और वचनसिद्धता, महान उत्पन्न हो हो कर नष्ट हो चुकीया अब प्रच- पुरुषों से पूजा और परलोक में श्रेष्ठ गति लित हो रही हैं उनमें से हरेक की वर्णमाला प्राप्त करता है। में यथा आवश्यक भिन्न भिन्न अक्षर-संख्या (शा. प्र० ३८, श्लो०२-६, उ० १, २) नोट-जिसध्यान में एकया अनेक अक्षरों अक्षरमातका-ध्यान-"पदस्थध्यान" | से बने हुए मंत्री या पदों का यापदों के आश्रय उन के वाच्य देवी देवताओं का या शुद्धात्मके अनेक भेदों में से एक का नाम । यह तत्व या परमात्म-तत्व का विधिपूर्वक चिन्तध्यान इस प्रकार किया जाताहै:- ध्याता | वन किया जाय उसे “पदस्थ-ध्यान" कहते अपने "नाभि मंडल" पर पहिले १६ पंखड़ी हैं। धर्म ध्यान के चार भेदों अर्थात् (१) आज्ञा के कमल का दृढ़ चिन्तवन करै। प्रत्येक विचय, (२) अपाय विचय, (३ विपाक विचय, और (४) संस्थान विनय में से चतुर्थ भेद पाँखड़ी पर स्वरावली के १६ स्वरों अर्थात् "संस्थान विचय" के अन्तर्गत (१) पिंडस्थ, अ आ इ ई उ ऊ ऋ क ल ल ए ऐ ओ | (२) पदस्थ, (३) रूपस्थ और (४) रूपातीत, औ अं अः में से एक एक क्रम से स्थित यह जो चार प्रकार के ध्यान हैं इनमें से दूसरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy