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________________ | अक्षर वृहत् जैन शब्दार्णव अक्षरमातृका ६४ (१) उपर्युक्त कोष्ठ से प्रकट है कि एक | (४) उपर्युक्त करण सूत्र के अनुकूल अक्षर से केवल एक ही असंयोगी भंग, | १ अक्षर की भंग-संख्या... . ... . २-१=१ दो अक्षरों से सर्व ३ भंग, तीन अक्षरों से | २ अक्षरों की भंग-संख्या २४ २-१ सात, चार अक्षरों से १५ और पांच अक्षरों =२-१४-१% से ३१ भंग प्राप्त होते हैं। ३ अक्षरों की भंग-संख्या २x२x२-१ (२) भंगों को क्रम से बढ़ती हुई इस =२-१८-१७ संख्या पर दृष्टि डालने से यह जाना जाता है कि भंगों की प्रत्येक अगली अगली १. अक्षरों की भंग-संख्या २x२x२x२-१ संख्या अपनी निकट पूर्व-संख्या से द्विगुण से एक अधिक है; इसी नियमानुकूल छह | ५ अक्षरों की भंग-संख्या अक्षरों से प्राप्त भंग-संख्या ३१ के द्विगुण २x२x२x२x२-१-२-१=३२-१=३१ से एक अधिक अर्थात् ६३, सात अक्षरों | ६ अक्षरों की भंग-संख्या से प्राप्त भंग-संख्या ६३ के द्विगण से एक २x२x२x२x२x२-१-२-१६४-१६३ अधिक अर्थात् १२७, आठ अक्षरों से इत्यादि प्राप्त भंग-संख्या २५५, नौ अक्षरों से प्राप्त भंग-संख्या ५११, दश अक्षरों से १०२३, अतः ६४ मूलाक्षरों की भंग-संख्या=२-१ इत्यादि । इसी रीति से द्विगुण द्विगुण कर =एकट्टी-१-१८४४६७४४०७३७०६५५१६१५ के एक एक जोड़ते जाने से ६४ अक्षरों से . नोट ३-६४ मूलाक्षरों से असंयोगी, प्राप्त भंग-संख्या अर्थात् सर्व असंयोगी द्विसंयोगी, त्रिसंयोगी आदि ६४ संयोगी तक के जो सर्व एक कम एकट्ठी प्रमाण अक्षर और संयोगी अक्षरों की संख्या उपर्युक्त एक बनते हैं उनके जानने की प्रक्रिया दूसरे प्रकार कम एकट्ठी प्रमाण प्राप्त होगी। | सेदूसरे प्रकार के कोष्ठ सहित "श्रीगोमट्टसार" (३) अतः उपर्युक्त नियम से १, २, जीवकांड की गा० ३५२. ३५३, ३५५ की ३, ४, ५, ६ आदि चाहे जितने मूलाक्षरों श्रीमान् पं. टोडरमल जो कृत व्याख्या में द्रित ग्रन्थ का पृ. ७५४) अथवा से प्राप्त होने वाली सवं असंयोगी और | इसी की प्रति-लिपि रूप "श्रीभगवती आरासंयोगी अक्षरों की संख्या जानने के लिए धनासार" की गा० ५.५ की व्याख्या में देखें निम्न लिखित 'करणसूत्र' या 'गुर' की (कोल्हापुर जैनेन्द्र-प्रेस की प्रथमावृति के उत्पत्ति होती है: मुद्रित ग्रन्थ का पत्र १६६) जितनी मूलाक्षर संख्या हो उतनी जगह | अक्षरमातृका-सर्व अक्षरों का समूह । २ का अङ्क रख कर परस्पर उन्हें गुणे और इस के पर्यायवाचक (अन्य एकार्थ बोधक गुणन फल से एक कम कर दें। शेष संख्या नाम)अक्षरमाला, अक्षरश्रेणी, अक्षरावली, असंयोगो, द्विसंयोगी, त्रिसंयोगी आदि वर्णमाला, अक्षरमालिका, वर्णमातृका, सर्व अक्षरा की जोड़ संख्या होगी। । अक्षरसमाम्नाय, इत्यादि हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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