________________
(
२४
)
अकृत्रिमजिनपूजा
वृहत् जैन शब्दार्णव
अक्रियावाद
नाथ का व्याहला (३) नमोकार पञ्चीसी स्वतःनास्तिवाद (1) ईश्वरपरतः नास्ति(४) फूलमाल पच्चीसी (५) अरहन्त पासा
वाद (७) आत्मास्वतः नास्तिवाद (८) केवली ( संस्कृत), इत्यादि ॥
आत्मापरतः नास्तिवाद (६) नियतिस्वतः ३. पं. नेमकुमार रचित पूजन ।
नास्तिवाद (१० ) नियति परतः नास्ति४. पं० चन सुख जी खंडेलवाल जयपुर
वाद ( ११ ) स्वभावस्वतः नास्तिवाद निवासी रचित पूजा।
(१२) स्वभावपरतः नास्तिवाद । यह १२ अकृत्रिमजिनपूजा-देखो शब्द “अकृ- | मूल भेद हैं। इन १२ को जीव, अजीव, त्रिम चत्य पूजा"।
आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष, अकृत्रिम-जिन-प्रतिमा-देखो शब्द
इन तत्वों में से हर एक के साथ अलग २
लगाने से हर तत्त्व सम्बन्धी बारह बारह __ "अकृत्रिम चैत्य"।
भेद हो कर कुल १२४७ ( १२ गुणित ७) अकृत्रिम-जिन-भवन-देखो शब्द “अकृ- अर्थात् ८४ भेद हो जाते हैं । त्रिम चैत्यालय'।
नोट १-'भाव' शब्द का अर्थ है अभिअकृत्स्नस्कन्ध-अपरिपूर्ण स्कन्ध, दो | प्राय, विचार, चेष्टा, मानसविकार, सत्ता, परमाणुओं से लेकर एक परमाणु कम अन
मानस क्रिया, स्वभाव । शास्त्रीय परिभाषा
में 'भाव' मन की उस 'क्रिया' या चेष्टा' को न्त परमाणुओं तक से बने हुए सर्व प्रकार
अथवा उस “आत्मस्वभाव" या "आत्मसत्ता" के स्कन्ध (अ० मा० अकसिण स्कन्ध )। को कहते हैं जो अपने प्रति पक्षी कर्मों के उप
| शम या क्षयादि होने पर उत्पन्न होती है और अकृत्स्ना -प्रायश्चित का एक भेद जिसमें
जिससे जीव का अस्तित्व पहिचाना जाता अधिक तप का समावेश हो सके । अ० है । इस “भाव' की 'गुण' संज्ञा भी है । मा० अकसिणा)।
___ भाव के ५ मूल भेदों में से एक 'औदप्रक्रियावाद-“औदयिक भाव" के २१ भेदों यिक भाव' है जिसके २१ भेद निम्नलिखित में से एक 'मिथ्यात्व भाव' जन्य 'गृहीत
हैं जो जीव में कर्म के उदय से उत्पन्न मिथ्यात्व' के अन्तर्गत जो 'एकान्तवाद'
होते हैं:है उस के ४ मूल भेदों-क्रियावाद, (१) देवगति जन्य भाव, (२) मनुष्य गति अक्रियावाद, अज्ञानवाद और वैनयिक- जन्य भाव, ३) तिर्यश्च गति जन्य भाव, बाद में से दूसरा भेद । इस अक्रियावाद (४) नरकगति जन्य भाव, (५) पुल्लिङ्ग जन्य के निम्न लिखित मूलभेद १२ और भाव, (६)स्त्रीलिंगजन्य भाव, (७) नपुंसकविशेष भेद ८४ हैं:
लिङ्गजन्यभाव,(८)क्रोध कषायजन्यभाव,(६ (१) कालनास्तिवाद (२.) नियत- | मान कषाय जन्य भाव, (१०) माया कषाय नास्तिवाद (३) कालस्वतः नास्तिवाद जन्य भाव, (११) लोभ कषाय जन्य भाव, (४) कालपरतःनास्तिवाद (५) ईश्वर- (१२) मिथ्यात्व जन्य भाव, (१३) कृष्ण
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org