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________________ ( २३ ) armanamavasamue -ara.warned अकृत्रिम चैत्यालय वृहत् जैन शब्दार्णव अकृत्रिम चैत्यालय पूजा no ___ इस प्रकार त्रिलोक के सर्व अ-| कोश की है। ऐसे चैत्यालय विजिया त्रिम चैत्यालय, व्यन्तरों और ज्यो- गिरि, जम्बुवृक्ष शालमली वृक्ष के हैं । तिषी देवों के स्थानों के असंख्य चैत्या- (५) अविशेषणिक-इनकी लम्बाई लयों के अतिरिक्त (४५८+७७२०००००+ आदि अनियत है । ऐसे चैत्यालय अवशेष २४६७०.३) ८५६६७४८२ आठ करोड़ सर्व भवनवासी, व्यन्तर आदि के भवनों छप्पन लाख सत्तानवे हज़ार चार सौ इक्यासी हैं ॥ (त्रि. गा.५६१,५६२,२०६,४५१, है नोट २-हर चैत्यालय में १०८ अकृत्रिम र १०१६,६८६,६७८-९८२) चैत्य है। इस लिये कुल अकृत्रिम चैत्य या अकत्रिम चैत्यालय पजा-यह हिन्दी जिन प्रतिमाओं की संख्या चैत्यालयों की अकृत्रिम चत्यालय पुजा-यह हिन्दी उपर्युक्त संख्या ८५६६७४८ को १०८ से | ___ भाषा के एक पूजन ग्रन्थ का नाम है जो गुणन करने से ६२५५३२७६६८ प्राप्त होगी॥ | निम्न लिखित कवियों द्वारा रचित कई ___ नोट:-हर पर्वत या द्वीप या लोक के प्रकार का उपलब्ध है:उपर्युक्त चैत्यालयों की अलग अलग संख्याओं को १०८ में अलग अलग गुणन करने से हर १ सांगानेर निवासी पं० लालचन्दरचित एक के अकृत्रिम जिन बिम्बों की अलग-अलग भाषा पूजो। संख्या निकल आवेगी। नोट १-इन कवि के रचे अन्य ग्रन्थ ___ नोट ४-परिमाण अपेक्षा सर्व अकृत्रिमः | निम्न लिखित हैं:जिन चैत्यालय उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य, लघु और अविशेषणिक भेद से निम्न लिखित पाँच (१) षट् कर्मोपदेश रत्नमाला ( वि० प्रकार के हैं:-- सं० १८१० में ), ( २ ) वारांग चरित्र (१) उत्कृष्ट-इनकी लम्बाई, चौड़ाई, | छन्दोवद्ध ( वि० सं० १८२७ में , (३)| ऊँचाई क्रम से १००, ५०, ७५ महायोजन | विमलनाथ पुराण छन्दोबद्ध ( वि० सं० है। ऐसे चैत्यालय भद्रशालबन, नन्दन | १८३७), (४) शिखर बिलास छन्दोबद्ध वन, नंदीश्वर द्वीप और ऊर्द्ध लोक के हैं। (वि० सि. १८४२ ). (५) इन्द्रध्वज पूजा (२) मध्यम-इनकी लम्बाई, चौड़ाई, । (६) सम्यक्त कौमुदी छन्दोबद्ध (७) ऊँचाई, क्रम से ५०, २५, ३७॥ महा योजन आगम शतक छन्दोबद्ध (८) पञ्च परमेष्ठी है। ऐसे चैत्यालय सौमनसवन,रुचकगिरि, | पूजा ( ६ ) समवशरण पूजा { १०) त्रिलोकुंडलगिरि, वक्षारगिरि, गजदन्त, इष्वाकार, | कसार पूजा( ११ ) तेरह द्वीप पूजा (१२) मानुषोत्तर और षट कुलाचलों के हैं। पञ्च कल्याणक पूजा (१३ ) पञ्च कुमार (३) जघन्य - इनकी लम्बाई चौड़ाई पूजा। क्रम से २५, १२॥ १॥महायोजन है। २. दरिगह मल्ल के पुत्र पं० विनोदीलाल ऐसे चैत्यालय पांडुक बन के हैं। रचित भाषा पूजा। (४) लघु-इनकी लम्बाई, चौड़ाई, नोट २-इन कवि के रचे अन्य ग्रन्थः-- ऊँचाई क्रम से केवल एक, अर्द्ध और पौन (१) भक्ताम्मर चरित्र छन्दोबद्ध (२) नेम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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