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( २२ ) अकृत्रिमचैत्य-पूजा वृहत् जैन शब्दार्णव
अकृत्रिमचैत्यालय नोट-अष्ट प्रकार व्यन्तर देवों और पञ्च एक मानुषोत्तर पर्वत पर चार......४ प्रकार ज्योतिषी देवों के स्थानों में अकृत्रिम
पाँच मेरु सम्बन्धी पाँच शालमली चैत्य असंख्यात हैं॥ त्रिलोक के शेष सब स्थानों में जहाँ कहीं अकृत्रिम जिनप्रतिमा हैं
बृक्षों में से प्रत्येक पर एक एक (५४१,...५ उन सर्व की संख्या नौ सौ पच्चीस करोड़ पाँच मेरु सम्बन्धी एक जम्बू, दो त्रिपन लाख सत्ताइस हजार नौ सौ अड़ता. धातकी, दो पुष्कर वृक्षों में से प्रत्येक पर लीस ( ६२५५३२७६४८ ) है ॥ (देखो शब्द
एक एक (kx१)..... ............. "अकृत्रिम चैत्यालय" का नोट २)॥
हर मेरु सम्बन्धी बत्तील २ विदेहों अकृत्रिमचैत्य-पूजा-जयपुर निवासी पं०
और एक भरतवएक ऐरावत क्षेत्रों से हर चैनसुख जी रचित पूजन के एक भाषा
एक के एक एक विजया या वैताढ्य ग्रन्थ का नाम जिसमें त्रैलोक की अकृत्रिम
पर्वत पर एक एक (५४३४४१)......१७० जिनप्रतिमाओं का पूजन है।
कुल जोड़ ३६८ अकृत्रिमचैत्यालय-अकृत्रिम देवायतन,
इस प्रकार अढ़ाई द्वीप में कुल ३६८ अकृत्रिम देवालय, अकृत्रिम देवमन्दिर। ।
अकृत्रिम चैत्यालय हैं । "नन्दीश्वर"नामक नोट १- अष्ट प्रकार के व्यन्तरों और
अष्टम द्वीप की चार दिशाओं में से हरएक पञ्च प्रकार के ज्योतिषी देवों के स्थानों में में एक 'अजनगिरि' चार 'दधिमुख' और असंख्यात अकृत्रिम जिनमन्दिर हैं। त्रिलोक आठ 'रतिकर' नामक पर्वतहैं और हर पर्वत के शेष स्थानों के अकृत्रिम जिनमन्दिरों की पर एक एक अकृत्रिम चैत्यालय है। इस संख्या निम्न प्रकार है:
प्रकार हर दिशा के १३और चारों दिशाओं __ अढ़ाईद्वीप (मनुष्य लोक ) के ५
के सर्व ( १३४४ ) ५२ अकृत्रिम चैत्यालय मेरु में से प्रत्येक पर सोलह सोलह
हैं। "कुण्डलवर" नामक ग्यारह द्वीप में (१६४५ ).........................८०
इसी नाम के पर्वत पर४,और "रुचकवर" प्रत्येक मेरु सम्बन्धी छह छह कुला
नामक तेरह द्वीप में भी इसी नाम के पर्वत चलों में से हर कुलाचल पर एक एक
पर ४ अकृत्रिम चैत्यालय हैं । (५४६४१)........................... प्रत्येक मेरु सम्बन्धी सोलह सोलह
इस प्रकार मध्य लोक में सर्व वक्षारगिरों में से हर वक्षारगिर पर एक
(३६८१५२+४+४)४५८ अकृत्रिमचैत्यालयहैं। एक (५४१६४१)..................
पाताल लोक में । भवनवासी देवों के प्रत्येक मेरु सम्बन्धी चार चार गज
भवनों में चित्रा पृथ्वी से नीचे ) सर्व दन्तों में से हर गजदन्त पर एक एक
७७२००००० सात करोड़ बहत्तर लाख (५४४४१)....................
अकृत्रिम चैत्यालय हैं । चार इष्वाकार (इषु-आकार अर्थात् __ऊद्ध लोक में (प्रथम स्वर्ग से सर्वार्थतीर के आकार पर्वत) में से हरएक पर सिद्धि-विमान तक)सर्व८४६७०२३चौरासी एक एक (४४१).....""........."४ लाख ६७ हजार तेईस अकृत्रिम चैत्यालयहैं।
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