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प्रकृतिमातृक अङ्क
वृहत् जैन शब्दार्णव
अकृत्रिमचैत्य
में से कृतिधारा के अङ्कों को छोड़कर अकृतिमातकधारा-(अवर्गमातक धारा ( १, ४, ६, १६, २५, ३६, ४६, ६४, ८१,
या अवर्गमूल धारा)-अङ्कगणित सम्ब१००, १२१ आदि को छोड़कर ) अन्य
न्धी १४ धाराओं में से एक धारा का सर्व अङ्क २, ३, ५, ६, ७, ८, १० आदि
नाम, सर्वधारा अर्थात् १, २, ३, ४, ५, ६, एक कम उत्कृष्ट-अनन्तानन्त तक । इस
७, ८, आदि उत्कृष्ट अनन्तानन्त तक की धारा का प्रथम अङ्क या प्रथम स्थान २ है
पूर्ण संख्या ( गिनती ) में से केवल वे सर्व और अन्तिम अङ्क (अन्तिम स्थान )
अंक जिनका वर्ग कोई अङ्क न हो अर्थात् उत्कृष्ट अनन्तानन्तसे१ कम है। 'सर्वधारा'
एक के अङ्क से उत्कृष्टअनन्तानन्त के वर्गके अङ्कों की स्थान संख्या अर्थात् उत्कृष्ट
मूल तक के सर्वधारा के समस्त अङ्कों की अनन्तानन्त में से 'कृतिधारा' के अङ्कों की
(जो कृतिमातृक या वर्गमातृक या वर्गस्थान संख्या ( उत्कृष्ट अनन्तानन्त का
मूल धारा के अङ्क हैं ) छोड़ कर सर्व धारा वर्गमूल ) घटा देने से जो संख्या प्राप्त
के शेष समस्त अङ्क । इस धारा का प्रथम होगी वह इस 'अकृतिधारा' के अङ्कों की
अङ्क (प्रथम स्थान ) उत्कृष्ट अनन्तानन्त स्थान-संख्या है । ( आगे देखो शब्द
के वर्ग मूल से १ अधिक है । और अन्तिम "अङ्कविद्या" और "चतुर्दश धारा” ।
अङ्क ( अन्तिम स्थान ) उत्कृष्ट अनन्ताप्रकृतिमातृक अङ्क (अवर्गमूल अङ्क)
नन्त है । उत्कृष्ट अनन्तानन्त में से उसका वह अङ्क जो किसी का वर्गमूल न हो, । अर्थात् जिस का वर्ग उत्कृष्ट अनन्तानन्त
वर्गमूल घटा देने से जो सङ्ख्या प्राप्त । की संख्या से बढ़ जाय जो असंभव है । होगी वही इस 'अकृतिमातृक-धारा' के
प्रत्येक अकृतिमातृक अङ्क उत्कृष्ट अनन्ता- अङ्कों की स्थान-संख्या है। नन्त के वर्गमूल के अङ्क से बड़ा होता नोट १-अकृतिधारा और अकृतिमातृक । है अर्थात् उत्कृष्ट अनन्तानन्त के वर्गमूल में धारा के अङ्कों की स्थान-संख्या समान है। । १ जोड़ने से जो अङ्कप्राप्त होगावह प्रथम या नोट २-खर्व अकृतिमातृक अङ्कों का सप से छोटा या जघन्य "अकृतिमातृक- समूह ही "अकृतिमातृक धारा" है । (देखो अङ्क" है । इसके आगे एक एक जोड़ते | शब्द "अकृतिमातृक अङ्क) जाने से जो उत्कृष्ट अनन्तानन्त तक अङ्क प्राप्त होंगे वे सर्व ही "अकृतिमातक | अकृत्रिम-अजन्य, प्राकृतिक, स्वाभाविक, अङ्क" हैं जिनमें उत्कृष्ट अनन्तानन्त की बिना बनाया हुआ, जो किसी मनुष्यादि संख्या "उत्कृष्ट अकृतिमातृक अङ्क" है॥
प्राणी द्वारा बुद्धि पूर्वकन बनाया गया हो, नोट १–अकृतिमातृक-अङ्क यद्यपि अपने
अनादिअनिधन ॥ स्तविक रूप में तो केवल कैवल्यशान गम्य हैं तथापि मन की काल्पनिक शक्ति द्वारा अकृत्रिमचैत्य-अकृत्रिम प्रतिमा, अकृत्रिम का विचार और निर्णय उद्मस्थ (अल्पज्ञ)
देवप्रतिमा, अजन्य देवमूर्ति, अनादिनिधन णितज्ञ भी कर सकते हैं। [ नोट २-आगे देखो शब्द 'अङ्क', 'अङ्कग- |
दिगम्बर मनुष्याकार शान्ति-मुद्रा धारी ना', 'अङ्क गणित', 'अङ्कषिद्या' ॥
प्रतिमा, अकृत्रिम जिनबिम्ब ॥
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