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अकिञ्चन
वृहत् जैन शब्दार्णव
अकृतिधारा
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अकिञ्चन-निष्परिग्रही, सर्व सांसारिक होती रहती है। इसी को 'सविपाकपदार्थों से मोह ममता त्यागने वाला, दिग
निर्जरा' तथा 'अबुद्धिपूर्वा-निर्जरा' भी
कहते हैं । म्बर साधु । (पीछे देखो शब्द "अकच्छ”)
नोट-कर्म-निर्जरा के दो भेद “अकुशल अकिञ्चित्कर-किश्चित्मात्र भी न कर सकने मूला" और 'सकुशलमूला” या “सविपाक" वाला, असमर्थ, निष्प्रयोजन, निष्फल, और "अविपाक" या "अबुद्धिपूर्वा" और निर्मूल; न्याय की परिभाषा में हेत्वाभास
"बुद्धि पूर्वा” हैं। के ४ भेदों में से एक भेद जो साध्य की अकृति-कृति रहित, निकम्मा, मूर्ख, वक्र, सिद्धि करने में असमर्थ हो॥
साधन रहित; अवर्ग, गणित की परिभाषा नोट-हेत्वाभास के ४ भेद.-(१) में एक प्रकार का अङ्क जो किसी पूर्णाङ्क असिद्ध (२) विरुद्ध (३) अनैकान्तिक (४) का वर्ग न हो॥ अकिश्चित्कर ।
| अकृति अङ्क ( अवर्ग अङ्क )-वह अङ्क अकिञ्चित्कर हेत्वाभास-वह हेतु जो |
जो किली पूर्णाङ्क का वर्ग न हो अर्थात् साध्य की सिद्धि करने में असमर्थ या अना
जिस का वर्गमूल कोई पूर्णाङ्क न हो, वश्यक हो । इस के दो भेद हैं ( १ ) सिद्ध
जैसे २, ३, ५. ६, ७, ८, १०, ११, १२, साधन-अकिञ्चित्कर-हेत्वाभास (२) वा.
___ १३, १४, १५, १७ इत्यादि । धित-विषय-अकिञ्चित्कर-हेत्वाभास, जिस नोट १--- शेष अङ्क १, ४, ६, १६, २५, के प्रत्यक्षवाधित, अनुमानवाधित, आगम-३६ आदि जो किसी न किसी अङ्क का वाधित, स्वबचन-वाधित आदि कई
वर्ग हैं “कृति अङ्क" कहलाते हैं । भेद हैं । (प्रत्येक भेद का स्वरूपादि यथा
__ नोट २-किसी अङ्क को जब उसी अङ्क
से एक बार गुणें तो गुणनफल को उस स्थान इसी कोष में देखें)॥
मूल अङ्कका वर्ग' कहते हैं और उस मूल अकुशजम्ना-जिसकी जड़ कुशल रहित
| अङ्क को इस गुणन फल का 'वर्गमूल' कहते
हैं। जैसे ३ को ३ ही में गुणे तो गुणनफल या कल्याण रहित हो, निष्प्रयोजन,
६ प्राप्त हुआ। यह १ का अङ्क ३ का वर्ग है अकार्यकारी, बेकार, बेमतलब, कर्म-निर्जरा और ३ का अङ्क ६ का वर्गमूल है ॥ का एक भेद ॥
अकृति धारा (अवर्गधारा)-- अङ्कगणित अकुशनमूना-निर्जरा-निर्जरा के दो
की चौदह धाराओं में से एक धारा का मूल भेदों में से एक का नाम; वह निर्जरा नाम,सर्व अकृति अङ्कों का समूह, सर्व अङ्कों (आत्मा से कुछ कर्मों का सम्बंध टूटना ) अर्थात् १, २, ३, ४, ५, ६. आदि उत्कृष्ट जो बिना किसी उपाय के अबुद्धि पूर्वक अनन्तानन्त तक की पूर्ण संख्या में से वे कर्मों के उदय आने पर कर्म फल के विपाक सर्व अङ्क जिनका वर्ग मूल कोई पूर्ण अङ्क या भोग से संसारी जीवों के स्वयमेव | न हो अर्थात् संख्यामान की "सर्वधारा"
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