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________________ nagee अक्रियावाद वृहत् जैन शब्दार्णव अक्रूर लेश्या जन्य भाव. (१४) नील लेश्या जन्य प्रक्रियावादी–अक्रियावाद के ८४भेदों में भाव, (१५) कापोत लेश्या जन्य भाव. से किसी एक या अनेक भेदों का पक्ष(१६) पीत लेश्या जन्य भाव, (१७) पद्म पाती वा श्रद्धानी व्यक्ति ॥ लेश्या जन्य भाव, (१८) शुक्ल लेश्या जन्य (पीछे देखो शब्द "अक्रियावाद") भाव,(१६)असिद्धत्व जन्य भाव, (२०) असं. यम जन्य भाव, (२१) अज्ञान जन्य भाव । अकर-इस नाम के निम्नलिखित कई नोट २ - उपर्युक्त २१ भेदों में से १२ वें| प्रसिद्ध पुरुष हुए:मिथ्यात्व जन्य-भाव के मूल भेद दो हैं- (१) अक्रूरडष्टि-श्रीकृष्णचन्द्र का (१) अगृहीत या निसर्गज मिथ्यात्वजन्य भाव एक मुसेरा बड़ा भ्राता । बल और वीरता और (२) गृहीत या अधिगमज मिथ्यात्व के कारण इसे "अर्द्ध-रथी" का पद प्राप्त जन्य भाव । इन दो में से दूसरे गृहीत मिथ्यात्व जन्य भाव के मूल भेद ५ हैं -(१) एकांत था। यह श्रीकृष्णचन्द्र ( नवम नारायण ) (२) विपरीत (३) विनय (४) संशय और के पिता श्री वसुदेव (२० वे कामदेव) की (५) अज्ञान-इन ५ में से पहिले भेद “एका- सबसे पहिली स्त्री गन्धर्वसेना ( द्वितीय न्त मिथ्यात्व" के जो शेष चारों मिथ्यात्व का नाम विजयसेना) से पैदा हुआ था। मूल है और जिसकी झलक प्रायः शेष चारों 'सोमादेवी' इसकी माता की बड़ी बहन थी। में भी दिखाई देती है उसके (१) क्रियावाद (२) अक्रियावाद (३) अज्ञानवाद और (४)वैन और विजयखेट नगर का एक प्रसिद्ध यिकवाद, यह चार मूल भेद और उनके क्रमसे | गन्धर्वाचार्य “सुप्रीव' नामक इसका १८०, ८४, ६७, और ३२ एवं सर्व ३६३ विशेष नाना था। एक "ऋर" नामक इसका। भेद हैं। इन में से अक्रियावाद के उपर्युक्त ८४ लघु भ्राता था ॥ भेद हैं जिनमें से प्रत्येक का अभिप्राय है कि आत्मस्वरूप जानने या दुःख-निवृत्ति के लिये (२) श्रीकृष्णचन्द्र का एक पितृन्य। किसी प्रकार की क्रिया कलाप के संकट में | (चचा)-इसके पिता का नाम 'स्वफल्क' । फँसना ब्यर्थ है जिसकी पुष्टी इन उपर्युक्त और माता का नाम 'गान्धिनी' (गान्दिनी) ६४ वादों में से किसी न किसी एक या था जो काशी नरेश की पुत्री थी। यह | अधिक से एकान्त पक्ष के साथ बिना किसी अक्रूरादि १२ भाई थे। अपेक्षा के की जाती है, जिससे ऐसा ही एकान्त विचार हृदयस्थ हो जाता है। (३) मगधाधीश राजा श्रेणिक (विम्ब___ नोट ३-भाव के ५ मूल भेद यह हैं- सार ) का एक पुत्र-इसका नाम 'कुणिक' (१) औपशमिक (२) क्षायिक (३) मिश्र और "अजातशत्रु' भी था । अक्रूर, (४) औदयिक (५) पारिणामिक । इनके वारिषेण, हल्ल, विदल, जितशत्रु, गजउत्तर-भेद क्रम से २, ६, १८, २१, ३. एवं कुमार ( दन्तिकुमार ), मेघकुमार, यह सर्व ५३ हैं। (आगेदेखो शब्द "अट्ठाईसभाव" का नोट)॥ . सात भाई थे जो श्रेणिक की “चेलनी" (गो. क. गा. ८८४, ८५,' नामक रानी से उत्पन्न हुए थे । इन सातों १८१२, ८१३, ८१८, .... से बड़ा इन का एक मुसेरा भाई "अभय तामा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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