________________
( १७ )
अकालवर्ष . वृहत जैन शब्दार्णव
अकालवर्ष पुण्य पुरुष तद्भव मोक्षगामी नहीं हैं; शेष ६३ में होगया है । इस अकालवर्ष के देहोत्सर्ग में से कुछ तद्भव मोक्षगामी हैं; और अन्य | के समय उत्तर भारत में ‘इन्द्रायुध' दक्षिण सर्व ही पुण्य पुरुष नियम से कुछ जन्म धारण में इसी कृष्णराज-अकालवर्षकापुत्र गोबिन्द कर निर्वाण पद शीघ्र ही प्राप्त करेंगे ॥ श्रीवल्लभ", पूर्व में गौड़' व अवन्तिपति अकाल वर्ष-इस नाम के मान्यखेट नगरा
"वत्सराज" और पश्चिम मेंसौराष्ट्राधिपति
"वीरवराह" शासन करते थे। इलोरा की धीश राष्ट्रकूटवंशीय अर्थात् राठौर-वंश
पहाड़ी पर कैलाश नामक मन्दिर को के कई एक इतिहास प्रसिद्ध जैनधर्म
पत्थर काटकर इसी 'अकालवर्ष' ने बनश्रद्धालु दक्षिण देशीय निम्न लिखित
वाया था। राजा हुए:--
(१) अकाल वर्ष प्रथम,अर्थात् “कृष्ण- (२) अकालवर्ष द्वितीय-यह 'अकालराज-अकालवर्ष शुभतुङ्ग"या"साहसतुङ्ग" वर्ष प्रथम" के लघु पुत्र "ध्रुवकलिवल्लभनाम से प्रसिद्ध -यह राठौरवंशी प्रथम धारावर्ष-निरुपम' के पौत्र 'शर्वदेवमहाराजराजा 'कर्कराज' का लघु पुत्र राष्ट्रकूटवन्श | अमोघवर्ष-नृपतुङ्ग" का पुत्र राष्ट्रकूटवंश का पाँचवाँ राजा था । इसने अपने बड़े | का १० वा राजा था । इसने अपने पिता भाई “इन्द्र" के पुत्रों 'खङ्गावलोक' और के पश्चात वीर नि.सं०१४१८ से १४५६ 'दन्तिदुर्ग' के शरीर त्यागने परवीर निर्वाण (वि० सं० ६३० से ६७१) तक ‘कृष्णसम्वत् १२६८ ( वि० सं० ८१० ) में दक्षिण अकालवर्ष शुभतुङ्ग द्वितीय" के नाम से देशीय राजगद्दी पाई। इसकी राजधानी | ४१ वर्ष राज्य किया इसका पुत्र जगत् 'मान्यखेट' नगरी थी जिसे आजकल मल- तुंग अपने पिता के राज्यकाल ही में मृत्यु खेड़ कहते हैं । सुप्रसिद्ध जैनाचार्य "श्री | को प्राप्त होचुका था । अतः इस अकालभट्टाकलङ्कस्वामी" इसी “अकालवर्ष-शुभ- वर्ष के पीछे इसके ज्येष्ठ पौत्र ( पोता ) तुङ्ग' के मन्त्री 'पुरुषोत्तम' के ज्येष्ठ पुत्र "इन्द्रराज-नित्यवर्ष' को राजगद्दी मिली ॥ थे । इस राजा ने ३० वर्ष राज्य भोगकर ___ महापुराण के पूर्व भाग श्री आदिपुराण वि० सं० ८४० ( शक सं० ७.५ ) में | के रचयिता "भगवजिनसेनाचार्य' के शरीरोत्सर्ग किया और इसकी जगह इस | शिष्य"भगवद्गुणभद्राचाय्य"जिन्होंनेमहाका पुत्र राजगद्दीपर आरूढ़ होकर "गोबिन्द- पुराण के उत्तर भाग "श्री उत्तरपुराण' को श्रीबल्लभ-अमोघवर्ष' नाम से प्रसिद्ध हुआ | रचा, इसी "अकालवर्ष द्वितीय' के सभजो श्री आदिपुराण के रचयिता "भगवजिन कालीन थे । इस अकालवर्ष के पिता सेनाचार्य” का परम भक्त शिष्य और "अमोघवर्ष-नृपतुङ्ग" ने वि० सं० ६३० में "प्रश्नोत्तर रत्नमाला" का रचयिता था। राज्यपद त्याग कर अपने दो ढाई वर्ष के इस प्रश्नोत्तर रत्नमाला का एक तिब्बती- बालक पुत्र को तो राज्यतिलक किया और भाषानुवाद भी ईसा की ११ वीं शताब्दी अपने लघुभ्राता “इन्द्रराज" को अपने पुत्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org